विसर्ग संधि के परिभाषा, नियम और उदाहरण आदि || Visarg Sandhi Kise Kahate Hain

विसर्ग संधि किसे कहते हैं ? Visarg Sandhi Kise Kahate Hain

मेरे मित्रों एवं पाठकों आपलोगों को इस लेख (Article) में विसर्ग संधि किसे कहते हैं ?(Visarg sandhi kise kahate hain) विसर्ग संधि का उदाहरण, विसर्ग संधि का भेद, विसर्ग संधि को संधि करने का नियम आदि को साधारण भाषा में समझानें का प्रयास किया गया है ।मुझे आशा है, कि आपलोग व्यंजन संधि को kamlaclasses.com के माध्यम से समझ पाएँगे ।

विसर्ग संधि किसे कहते हैं ? (Visarg Sandhi kise kahate Hain)

 “विसर्ग के बाद स्वर वर्ण या व्यंजन वर्ण के मेल से जो विकार या ध्वनि उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग संधि कहते है ।”

* नोट (Note) :- (i) विसर्ग (:) + स्वर वर्ण = विसर्ग 

जैसे :- दुः + आत्मा = दुरात्मा
विसर्ग + आ   (यहाँ विसर्ग के साथ स्वर वर्ण ‘आ’ का मेल हुआ है । अतः “दुरात्मा” विसर्ग संधि है ।)

निः + अर्थक = निरर्थक
विसर्ग + अ   (यहाँ विसर्ग के साथ स्वर वर्ण ‘अ’ का मेल हुआ है । अतः “निरर्थक” विसर्ग संधि है ।)

निः + आधार = निराधार
विसर्ग (:) + आ   (यहाँ विसर्ग (:) के साथ स्वर वर्ण ‘‘ का मेल हुआ है । अतः “निराधार” विसर्ग संधि है ।)

नि: + अन्तर = निरंतर
विसर्ग (:)
+ अ   (यहाँ विसर्ग (:) के साथ स्वर वर्ण ‘‘ का मेल हुआ है । अतः “निरंतर” विसर्ग संधि है ।

संधि किसे कहते है? Click here

विसर्ग संधि का  उदाहरण (Visarg Sandhi ke Udaharan):-

  • निः + अक्षर = निरक्षर  
  • निः + आशा = निराशा  
  • निः + आहार = निराहार                            
  • निः + उपाय = निरूपाय  
  • नि: + उद्देश्य = निरूद्देश्य   इत्यादि


(ii) विसर्ग (:) + व्यंजन वर्ण = विसर्ग 

जैसे :- दुः + गन्ध = दुर्गंध ।
विसर्ग (:)
+ ग   (यहाँ विसर्ग (:) के साथ व्यंजन वर्ण ‘‘ का मेल हुआ है । अतः “दुर्गंध” विसर्ग संधि है ।)

निः + धन = निर्धन  ।
विसर्ग (:) + ध   (यहाँ विसर्ग (:) के साथ व्यंजन वर्ण ‘‘ का मेल हुआ है । अतः “निर्धन” विसर्ग संधि है ।)

निः + जल = निर्जल  ।
विसर्ग (:) + ज   (यहाँ विसर्ग (:) के साथ व्यंजन वर्ण ‘ज’ का मेल हुआ है । अतः “निर्जल” विसर्ग संधि है ।)

निः + झर = निर्झर  ।
विसर्ग (:) + झ   (यहाँ विसर्ग (:) के साथ व्यंजन     वर्ण ‘झ‘ का मेल हुआ है । अतः “निर्झर” विसर्ग संधि है ) आदि ।

 

* विसर्ग संधि का अन्य उदाहरण  ( Visarg Sandhi Ke Udaharan ):-   
  • निः + भर = निर्भर
  • निः + मल = निर्मल
  • निः + विकार = निर्विकार
  • नि + चिन्त = निश्चिंत
  • तपः + वन = तपोवन
  • यशः + दा = यशोदा     इत्यादि


विसर्ग संधि के नियम (Visarg Sandhi ke Niyam) :-

विसर्ग संधि के नियम निम्नांकित है | Visarg Sandhi
विसर्ग संधि | Visarg Sandhi

नियम:- (01) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) के अंतिम उच्चारण/ वर्ण विसर्ग के पहले कोई स्वर (‘‘ या ‘‘ को छोड़कर) हो एवं दूसरी पद (शब्द) के प्रथम उच्चारण या वर्ण कोई स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ या औ) में से कोई रहें , तो विसर्ग (:) का – “र्” हो जाता है ।

जैसे :- निः + अर्थक = निरर्थक
(अतः यहाँ ‘निः – न् + इ + : (विसर्ग)‘ के साथ स्वर ‘अ’ का मेल हुआ है एवं “निः” में विसर्ग (:) से पहले ‘इ’ स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण स्वर वर्ण “अ” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

दुः + आत्मा = दुरात्मा
(अतः यहाँ ‘दुः – द् + उ + : (विसर्ग)’ के साथ स्वर ‘आ’ का मेल हुआ है एवं “दुः” में विसर्ग (:) से पहले ‘उ’ स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण स्वर वर्ण “आ” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

दुः + आशा = दुराशा ।
(अतः यहाँ ‘दुः – द् + उ + : (विसर्ग)’ के साथ स्वर ‘आ’ का मेल हुआ है एवं “दुः” में विसर्ग (:) से पहले ‘उ’ स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण स्वर वर्ण “आ” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

निः + उपाय = निरूपाय  ।
(अतः यहाँ ‘निः – न् + इ + : (विसर्ग)’ के साथ स्वर ‘उ’ का मेल हुआ है एवं “निः” में विसर्ग (:) से पहले ‘इ’ स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण स्वर वर्ण “उ” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

नियम-(01) का अन्य विसर्ग संधि के उदाहरण  (Visarg Sandhi Ke udaharan):-

  • निः + अक्षर = निरक्षर
  • निः + ईक्षण = निरीक्षण
  • दुः + आचार = दुराचार
  • निः + आधार = निराधार    इत्यादि

 

नियम – (02) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) का अंतिम उच्चारण/ वर्ण विसर्ग के पहले कोई स्वर (‘अ’ या ‘आ’ को छोड़कर) हो और दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण/वर्ण वर्ग (स्पर्श व्यंजन वर्ण) के तीसरे (ग, ज, ड, द या ब) , चौथे (घ, झ, ढ, द या भ) एवं पाँचवें वर्ण (ङ, ञ, ण, न या म) में से कोई आए , तो ‘विसर्ग (:)’ का“र्” हो जाता है ।

जैसे :- दुः + जन = दुर्जन ।
(अतः यहाँ ‘दुः – द् + उ + : (विसर्ग)’ के साथ वर्ग का तीसरा वर्ण- “ज” का मेल हुआ है एवं “दुः” में विसर्ग (:) से पहले ‘उ’ स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण वर्ग के तीसरा वर्ण- “ज” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

निः + झर = निर्झर ।
(अतः यहाँ ‘निः – न् + इ + : (विसर्ग)’ के साथ वर्ग का चौथा वर्ण- “झ” का मेल हुआ है एवं “निः” में विसर्ग (:) से पहले ‘इ’ स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण वर्ग के चौथा वर्ण- “झ” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

निः + मल = निर्मल ।
(अतः यहाँ ‘निः – न् + इ + : (विसर्ग)’ के साथ वर्ग का पाँचवें वर्ण- “म” का मेल हुआ है एवं “निः” में विसर्ग (:) से पहले ‘इ’ स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण वर्ग के पाँचवें वर्ण- “म” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

नियम-(02) का अन्य  विसर्ग संधि के उदाहरण (Visarg Sandhi ke Udaharn) :-

  • बहिः + मुख = बहिर्मुख
  • दुः + गति = दुर्गति
  • निः + जला = निर्जला
  • दुः + बुद्धि = दुर्बुद्धि      इत्यादि


नियम – (03)

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) के अंतिम उच्चारण/वर्ण विसर्ग के पहले कोई स्वर (‘अ’ या ‘आ’ को छोड़कर) आए और दूसरी पद (शब्द) के प्रथम उच्चारण/वर्ण “य, र, ल, व एवं ह” में से कोई हो , तो विसर्ग (:) का – “र्” हो जाता है ।

जैसे :- निः + रस = नीरस ।
(अतः यहाँ ‘निःन् + इ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘र’ का  मेल हुआ है एवं “निः” में विसर्ग (:) से पहलेस्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

आशीः + वाद = आशीर्वाद ।
(अतः यहाँ ‘शीःश् + ई + : (विसर्ग)‘ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “शीः” में विसर्ग (:) से पहले ‘स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण “व” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

नियम -(03) का अन्य, विसर्ग संधि के उदाहरण (Visarg Sandhi ke Udaharan):-
  • दुः + वह = दुर्वह
  • निः + रोग = नीरोग
  • निः + विकार = निर्विकार   इत्यादि

 

नियम-(04)

 विसर्ग के पहले ‘‘ हो और उसके बाद यदि कोई स्वर हो , तो भी “विसर्ग” का“र्” हो जाता है ।

जैसे :- पुनः + अवलोकन = पुनरावलोकन
(अतः यहाँ ‘नःन् + अ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “नः” में विसर्ग (:) से पहले ‘अ’ स्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

पुनः + इच्छा = पुनरिच्छा ।
(अतः यहाँ ‘नःन् + अ + : (विसर्ग)‘ के साथ ‘इ’ का  मेल हुआ है एवं “नः” में विसर्ग (:) से पहलेस्वर आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “र्” में बदल गया ।)

 

नियम-(05)

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) के अंतिम उच्चारण/वर्ण  विसर्ग के पहले” या “” हो एवं दूसरी पद (शब्द) के प्रथम उच्चारण/ वर्ण  “क, ख, प या फ” आए , तो “विसर्ग” का – “ष्” हो जाता है ।

जैसे :- दुः + कर्म = दुष्कर्म ।
(अतः यहाँ ‘दुःद् + उ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘क’ का  मेल हुआ है एवं “दुः” में विसर्ग (:) से पहले‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)”“ष्” में बदल गया ।)

दुः + प्रकृति = दुष्प्रकृति
(अतः यहाँ ‘दुःद् + उ + : (विसर्ग)‘ के साथ ‘प्’ का  मेल हुआ है एवं “दुः” में विसर्ग (:) से पहले ‘उ‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्णप्” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “ष्” में बदल गया ।)

निः + फल = निष्फल ।
(अतः यहाँ ‘निःन् + इ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “नि” में विसर्ग (:) से पहले ‘‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “ष्” में बदल गया ।)

* नोट(Note) :- 
(i) लेकिन ‘दुः‘ के बाद ‘‘ हो, तो विसर्ग ज्यों – का – त्यों रहता है ।
जैसे :- दुः + = दुःख

(ii) यदि ‘‘ अथवा ‘‘ के बाद “विसर्ग” हो और उसके बाद “क, ख, प या फ” आए , तो विसर्ग(:) ज्यों – का – त्यों रह जाता है ।

जैसे :- पयः + पान = पयःपान ।
(अतः यहाँ ‘यःय् + अ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “यः” में विसर्ग (:) से पहले ‘अ’  आया है। इसलिए “विसर्ग (:)” ज्यों – का – त्यों रह गया ।)

प्रातः + काल = प्रातःकाल ।
(अतः यहाँ ‘तःत् + अ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “तः” में विसर्ग (:) से पहले‘  आया है। इसलिए “विसर्ग (:) ज्यों – का – त्यों रह गया ।)

 

नियम- (06)

 यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) का अंतिम उच्चारण/वर्ण विसर्ग के पहले‘ हो और दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण/वर्ण ‘‘ आए , तो विसर्ग (:) का – “” हो जाता है ।

जैसे :- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल ।
(अतः यहाँ ‘नःन् + अ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “नः” में विसर्ग (:) से पहले ‘‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण “” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “” में बदल गया ।)

प्रथमः + अध्याय = प्रथमोध्याय ।
(अतः यहाँ ‘मःम् + अ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “मः” में विसर्ग (:) से पहले ‘‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण “” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “” में बदल गया ) आदि ।

 

नियम-(07) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) के अंतिम उच्चारण/वर्ण विसर्ग के पहले ‘अ’ हो एवं दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण/वर्ण वर्गीय (स्पर्श) व्यंजन वर्ण के तीसरे (ग, ज, ड, द या ब), चौथे (घ, झ, ढ, ध या भ) तथा पाँचवें वर्ण (ङ, ञ, ण, न एवं म) में से कोई  एक हो , तो “विसर्ग (:)” का – “” हो जाता है ।

जैसे :- अधः + गति = अधोगति ।
(अतः यहाँ ‘धःध् + अ + : (विसर्ग)’ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “धः” में विसर्ग (:) से पहले ‘‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “” में बदल गया ।)

मनः + मोहक = मनोमोहक ।
(अतः यहाँ ‘नःध् + अ + : (विसर्ग)‘ के साथ ‘‘ का  मेल हुआ है एवं “” में विसर्ग (:) से पहले‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण” का मेल हुआ। इसलिए “विसर्ग (:)” – “” में बदल गया )  आदि ।

 

नियम – (08) 

यदि संधि-विच्छेद के  प्रथम पद (शब्द) के अंतिम उच्चारण या वर्ण “विसर्ग (:)” से पहले  ‘‘  हो एवं दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण या वर्ण  “य, र  ल, व या ह” में से कोई एक हो, तो  “विसर्ग” का – “” हो जाता है ।

जैसे :- मनः + योग = मनोयोग
(अतः यहाँ ‘नः‘ में – न् + अ + विसर्ग (:) के साथ  ‘‘ का मेल हुआ है एवं  ‘नः‘ में विसर्ग (:) से पहले   ‘‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण  “” का मेल हुआ है । इसलिए ‘विसर्ग (:)’ – “” में बदल गया ।)

वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध  ।
(अतः यहाँ ‘यः‘ में – य् + अ + विसर्ग (:) के साथ  ‘‘ का मेल हुआ है एवं  ‘यः‘ में विसर्ग (:) से पहले   ‘‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण  “” का मेल हुआ है । इसलिए ‘विसर्ग (:)’ – “” में बदल गया ।)

तपः + वन = तपोवन  ।
(अतः यहाँ ‘पः‘ में – प् + अ + विसर्ग (:) के साथ  ‘‘ का मेल हुआ है एवं  ‘पः‘ में विसर्ग (:) से पहले   ‘अ’  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण  “” का मेल हुआ है । इसलिए ‘विसर्ग (:)’ – “” में बदल गया ।)

तेजः + राशि = तेजोराशि  ।
(अतः यहाँ ‘जः’ में – ज् + अ + विसर्ग (:) के साथ  ‘‘ का मेल हुआ है एवं  ‘जः‘ में विसर्ग (:) से पहले   ‘‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण  “” का मेल हुआ है । इसलिए ‘विसर्ग (:)’ – “” में बदल गया ।)

मनः + रथ = मनोरथ  ।
(अतः यहाँ ‘नः‘ में – न् + अ + विसर्ग (:) के साथ  ‘‘ का मेल हुआ है एवं  ‘नः‘ में विसर्ग (:) से पहले   ‘‘  आया है तथा दूसरी पद का पहला वर्ण ” का मेल हुआ है । इसलिए ‘विसर्ग (:)’ – “” में बदल गया ।)

नियम-(08) का अन्य, विसर्ग संधि के उदाहरण (Visarg Sandhi ka Udaharan):-
  • मनः + विकार = मनोविकार
  •  मनः + रम = मनोरम   इत्यादि


नियम-(09) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) का अंतिम उच्चारण विसर्ग (:)‘ हो एवं दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण या वर्ण   “”  या  “छ”  हो, तो  ‘विसर्ग (:)’ का — “श्” हो जाता है ।

जैसे :-

  •  विसर्ग(:) + च = श्च = निः + चय = निश्चय
  • विसर्ग (:) + च = श्च = निः + चल = निश्चल
  • विसर्ग (:) + च = श्च = निः + चिन्त = निश्चिंत
  • विसर्ग (:) + छ = श्छ =निः + छल = निश्छल  आदि ।

 

नियम -(10) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) का अंतिम उच्चारण  ‘विसर्ग (:)’ हो एवं दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण या वर्ण   “”  या  “”  हो , तो   ‘विसर्ग (:)’ का — “ष्” हो जाता है ।

जैसे :- 

  • विसर्ग(:)+ ट = ष्ट = धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
  • विसर्ग (:) + ठ = ष्ठ = निः + ठुर = निष्ठुर  । इत्यादि ।

 

नियम- (11) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) का अंतिम उच्चारण   ‘विसर्ग (:)’  हो एवं दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण या वर्ण    “”  या  “”  हो, तो    ‘विसर्ग (:)’ का –“स्”   हो जाता है ।

जैसे :-

  •  विसर्ग (:) + त = स्त = निः + तार = निस्तार  ।
  • विसर्ग (:) + त = स्त = नमः + ते = नमस्ते
  • विसर्ग (:) + त = स्त = दुः + तर = दुस्तर
  • विसर्ग (:)+ त = स्त = मनः + ताप = मनस्ताप  आदि ।

 

नियम – (12) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद के अंतिम उच्चारण  “विसर्ग (:)”  हो एवं दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण या वर्ण   ‘श्‘ ,  ‘ष्‘   या   ‘स्‘ हो, तो  “विसर्ग (:)”  ज्यों-का-त्यों रह जाता है । अथवा उसके स्थान पर  विसर्ग (:) के आगेवाला  वर्ण  एक और  “हलन्त्” के रूप में आ जाता है ।

जैसे :- 

  • विसर्ग (:) + श् = :श/श्श = दुः + शासन = दुःशासन या दुश्शासन   ।
  • विसर्ग (:) + स् = :स/स्स = निः + संतान = निःसंतान या निस्संतान     ।
  • विसर्ग (:) + श् = :श/श्श = निः + शब्द = निःशब्द या निश्शब्द    ।
  • विसर्ग (:) + स् = :स/स्स = निः + सहाय = निःसहाय या निस्सहाय    ।

* नियम-(12) का अन्य, विसर्ग संधि के उदाहरण  (Visarg Sandhi ka Udaharan) :-
  • निः + संदेह = निःसंदेह या निस्संदेह
  • निः + सार = निःसार या निस्सार  इत्यादि ।

 

नियम- (13) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) के अंतिम उच्चारण/वर्ण   “”  या   “”  के बाद  ‘विसर्ग (:)’  हो एवं दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण/वर्ण   “क,  ख,  प  या  फ”  में से कोई एक आए, तो  ‘विसर्ग (:)’  ज्यों-का-त्यों रह जाता है । अथवा कुछ शब्दों में यह  “विसर्ग (:)”  – “स्” में बदल जाता है ।

जैसे :-

  • विसर्ग (:) + क = :क = रजः + कण = रजःकण
  • विसर्ग (:) + क = स्क = नमः + कार = नमस्कार   ।
  • विसर्ग (:) + प = :प = अन्तः + पुर = अन्तःपुर
  • विसर्ग (:) + प = स्प = भाः + पति = भास्पति  आदि ।

 

* नियम-(13) का अन्य, विसर्ग संधि के उदाहरण ( Visarg Sandhi ke Udaharan ):-
  • प्रातः + काल = प्रातःकाल
  • श्रेयः + कर = श्रेयस्कर
  • पुरः + कार = पुरस्कार   इत्यादि   ।

 

नियम-(14) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) का अंतिम उच्चारण/वर्ण   “रेफ्” – ‘र्‘   हो एवं दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण/वर्ण    “र्”  हो, तो  “र्”  लोप (छुप) हो जाता है  और उसके पूर्व  का ह्रस्व स्वर,   दीर्घ स्वर में बदल जाता है ।

जैसे :- निर् + रस = नीरस    ।
(अतः यहाँ  “र्” के साथ “” का मेल हुआ है एवं “र्” का लोप हो गया । इसलिए “नि” के साथ ह्रस्व स्वर”   दीर्घ स्वर- “ई” में बदल कर  “नी”  का निर्माण किया ।)

निर् + रज = नीरज  ।
(अतः यहाँ  “र्” के साथ “” का मेल हुआ है एवं “र्” का लोप हो गया । इसलिए “नि” के साथ ह्रस्व स्वर”   दीर्घ स्वर“ई” में बदल कर  “नी”  का निर्माण किया ।)

 

*नियम-(14) का अन्य, विसर्ग संधि के  उदाहरण ( Visarg Sandhi ka Udaharan ):-
  • निर् + रोग = नीरोग
  • निर् + रूज = नीरूज   आदि ।

* नोट(Note) :- यहाँ  “निर्”  में निहित   “र्”  के बदले आप  ‘विसर्ग (:)’ भी दे सकते हैं ।

जैसे :- 

  • निर् /निः + रस = नीरस
  • निर् /निः + रोग = नीरोग
  • निर् /निः + रज = नीरज
  • निर् /निः + रूज = नीरूज   इत्यादि  ।

नियम- (15) 

यदि संधि-विच्छेद के प्रथम पद (शब्द) के अंतिम उच्चारण विसर्ग (:)‘  के पहले   “”  हो दूसरी पद (शब्द) का प्रथम उच्चारण/वर्ण   “अ”  आए तो, प्रथम पद का   “”  और  “विसर्ग (:)”  मिलकर   “”   एवं दूसरी पद का   “”   के स्थान पर लुप्ताकार  ()  का चिन्ह लग जाता है ।

जैसे :- प्रथमः + अध्याय = प्रथमोऽध्याय
+: = , =  से — ओऽ

यशः + अभिलाषी = यशोऽभिलाषी
+:=, =  से — ओऽ  इत्यादि ।

* नियम-(15) का अन्य, विसर्ग संधि के  उदाहरण ( Visarg Sandhi ke Udaharan ):-
  •  मनः + अभिलषित = मनोऽभिलषित
  • मनः + अनुकूल = मनोऽनुकूल   इत्यादि  ।

आशा करते हैं कि आपको इस ब्लॉग से विसर्ग संधि किसे कहते हैं ? (Visarg Sandhi Kise Kahate Hai )विसर्ग संधि के उदाहरण (Visarg Sandhi ka Udaharan), विसर्ग संधि के भेद , विसर्ग संधि ( Visarg Sandhi ) के नियम के बारे में जानकारी प्राप्त हुई होगी। व्यंजन  संधि एवं हिन्दी व्याकरण (Hindi Grammar) से जुड़े हुए अन्य  लेख पढ़ने के लिए हमारे YouTube Channel को सब्सक्राइब करें और kamla Classes के Facebook  एवं Instagram के पेज को भी Follow करें, समय पर सभी नए लेख के Notification पाने के लिए । धन्यवाद !

 


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