व्यंजन संधि किसे कहते हैं ?(Vyanjan Sandhi kise kahate hain)
मेरे मित्रों एवं पाठकों आपलोगों को इस लेख (Article) में व्यंजन संधि किसे कहते हैं ? ( Vyanjan Sandhi Kise Kahate Hain? ) व्यंजन संधि का उदाहरण, व्यंजन संधि का भेद (Vyanjan Sandhi ke Bhed), व्यंजन संधि को संधि करने का नियम आदि को साधारण भाषा में समझानें का प्रयास किया गया है । मुझे आशा है, कि आपलोग व्यंजन संधि को kamlaclasses.com के माध्यम से समझ पाएँगे ।
व्यंजन संधि किसे कहते है ? (Vyanjan Sandhi kise Kahate Hain)
“व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण या स्वर वर्ण के मेल से जो विकार या ध्वनि उत्पन्न होता है , उसे व्यंजन संधि कहते हैं” ।
जैसे :- सत् + जन = सज्जन
त् + ज = ज्ज
सम् + मान = सम्मान
म् + म = म्म
जगत् + ईश = जगदीश
त् + ई
अप् + आदान = अबादान
प् + आ
अभि + षेक = अभिषेक
इ + ष
आ + छादन = अच्छादन
आ + छ इत्यादि ।
* नोट(Note) :- (i) व्यंजन वर्ण + व्यंजन वर्ण = व्यंजन वर्ण ।
जैसे :- दिक् + गज = दिग्गज
क् + ग (यहाँ दो व्यंजन वर्ण का मेल हुआ है ,अर्थात् “दिग्गज”व्यंजन संधि है ।)
सम् + मान = सम्मान
म् + म (यहाँ दो व्यंजन वर्ण का मेल हुआ है ,अर्थात् “सम्मान”व्यंजन संधि है ।)
(ii) व्यंजन वर्ण + स्वर वर्ण = व्यंजन वर्ण ।
जैसे :- जगत् + ईश = जगदीश
त् + ई (यहाँ एक व्यंजन और एक स्वर वर्ण का मेल हुआ है , अर्थात् “जगदीश” व्यंजन संधि है ।)
चित् + आनन्द = चिदानंद
त् + आ (यहाँ एक व्यंजन और एक स्वर वर्ण का मेल हुआ है , अर्थात् “चिदानंद” व्यंजन संधि है ।)
(iii) स्वर वर्ण + व्यंजन वर्ण = व्यंजन वर्ण ।
जैसे :- आ + छादन = आच्छादन
आ + छ (यहाँ एक स्वर और एक व्यंजन वर्ण का मेल हुआ है, अर्थात् “आच्छादन” व्यंजन संधि है ।)
अभि + सेक = अभिषेक
इ + स (यहाँ एक स्वर और एक व्यंजन वर्ण का मेल हुआ है, अर्थात् “अभिषेक” व्यंजन संधि है ।)
व्यंजन वर्ण के पूर्ण जानकारी के लिए यहाँ दबाएं
व्यंजन संधि का कुछ नियम निम्नांकित है (Vyanan Sandhi ke Niyam) :-
नियम- (1)
“यदि संधि-विच्छेद ( Sandhi Vichchhed ) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण वर्गीय (स्पर्श) व्यंजन का प्रथम वर्ण ” क्, च्, ट्, त् और प् ” हो एवं दूसरा पद का प्रथम उच्चारण कोई स्वर वर्ण (अ, आ, इ, ई, उ,——-) आए, तो ‘क्‘ का –“ग्” , ‘च्‘ का — “ज्” , ‘ट्‘ का — “ड्” , ‘त्‘ का — “द्” और ‘प्‘ का —“ब्” हो जाता है” ।
जैसे :- क् + अ = ज = दिक् + अम्बर = दिगम्बर ।
(अतः यहाँ प्रथम पद का अंतिम उच्चारण “क्” एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण “अ” के मिलने से “ग” बना है ।)
च् + अ = ज = अच् + अन्त = अजन्त
(अतः यहाँ प्रथम पद का अंतिम उच्चारण “च्” एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण “अ” के मिलने से “ज” बना है ।)
ट् + आ = ड् = षट् + आनन = षडानन
(अतः यहाँ प्रथम पद का अंतिम उच्चारण “ट्” एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण “आ” के मिलने से “ड्” बना है ।)
त् + अ = द = उत् + अन्त = उदन्त ।
(अतः यहाँ प्रथम पद का अंतिम उच्चारण “त्” एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण “अ” के मिलने से “द” बना है ।)
प् + आ = ब = अप् + आदान = अबादान ।
(अतः यहाँ प्रथम पद का अंतिम उच्चारण “प्” एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण “आ” के मिलने से “ब” बना है ।) इत्यादि ।
नियम -(2)
“यदि संधि-विच्छेद (Sandhi Vichchhed) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण वर्गीय (स्पर्श) व्यंजन के प्रथम वर्ण “क्, च्, ट्, त् और प्” हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण वर्गीय (स्पर्श) व्यंजन के तीसरा वर्ण (ग, ज, ड, द, ब) या चौथा वर्ण (घ, झ, ढ, ध, भ) आए, तो ‘क्‘ का —“ग्” , ‘च्‘ का —“ज्” , ‘ट‘ का —“ड” , ‘त‘ का —“द्” एवं ‘प‘ का —“ब्” हो जाता है “।
जैसे :- दिक् + गज = दिग्गज ।
(अतः यहाँ ‘क्‘ के साथ ‘ग‘ का मेल हुआ है, एवं ‘क्‘ – “ग” में बदल गया । जिससे “ग्ग” का निर्माण हुआ। )
षट् + दर्शन = षड्दर्शन ।
(अतः यहाँ ‘ट्‘ के साथ ‘द‘ का मेल हुआ है, एवं ‘ट्‘ – “ड” में बदल गया । जिससे “ड्द” का निर्माण हुआ।)
अप् + ज = अब्ज ।
(अतः यहाँ ‘प्‘ के साथ ‘ज‘ का मेल हुआ है, एवं ‘प्‘ – “ब” में बदल गया । जिससे “ब्ज” का निर्माण हुआ। )
नियम- (3)
“यदि संधि-विच्छेद (Sandhi Vichchhed) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण वर्गीय (स्पर्श) व्यंजन का प्रथम वर्ण “क्, च्, ट्, त् तथा प्” हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण अंतःस्थ व्यंजन वर्ण- य, र, ल, व में से कोई वर्ण आए, तो — ‘क्’ का –“ग्”, ‘च्’ का –“ज्”, ‘ट्’ का –“ड्”, ‘त’ का –“द्” और ‘प्’ का — “ब” हो जाता है “।
जैसे :- अच् + लुप्त = अज्लुप्त ।
(अतः यहाँ ‘च्‘ के साथ ‘ल‘ का मेल हुआ है, एवं ‘च्‘ – “ज्” में बदल गया । जिससे “ज्ल” का निर्माण हुआ। )
उत् + विग्न = उद्विग्न ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘व‘ का मेल हुआ है, एवं ‘त्‘ – “द्” में बदल गया । जिससे “द्व” का निर्माण हुआ। )
उत् + योग = उद्योग ।
(अतःयहाँ ‘त्‘ के साथ ‘य‘ का मेल हुआ है, एवं ‘त्‘ – “द्” में बदल गया । जिससे “द्य” का निर्माण हुआ ) ।
नियम- (4)
“यदि संधि-विच्छेद (Sandhi Vichchhed) के प्रथम पद काअंतिम उच्चारण वर्गीय (स्पर्श) व्यंजन का प्रथम वर्ण ” क्, च्, ट्, त्, तथा प्” हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण “न या म” आए, तो प्रथम पद के वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग (जैसे- क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग) का पंचमाक्षर (ङ्, ञ्, ण, न् एवं म्) हो जाता है “।
जैसे :- वाक् + मय = वाङ्मय ।
(अतःयहाँ ‘क्‘ के साथ ‘म‘ का मेल हुआ है, एवं ‘क्‘ – “ङ्” में बदल गया । जिससे “ङ्म” का निर्माण हुआ ) ।
षट् + मास = षण्मास ।
(अतः यहाँ ‘ट्‘ के साथ ‘म‘ का मेल हुआ है, एवं ‘ट्‘ – “ण्” में बदल गया । जिससे “ण्म” का निर्माण हुआ ) ।
जगत् + नाथ = जगन्नाथ ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘न‘ का मेल हुआ है, एवं ‘त्‘ – “न्” में बदल गया । जिससे “न्न” का निर्माण हुआ ) ।
अप् + मय = अपम्मय ।
(अतः यहाँ ‘प्‘ के साथ ‘म‘ का मेल हुआ है, एवं ‘प‘ – “म्” में बदल गया । जिससे “म्म” का निर्माण हुआ ) ।
नियम – (5)
“यदि संधि-विच्छेद (Sandhi Vichchhed) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण “त्” या “द्” के बाद कोई भी व्यंजन वर्ण (क, च, ट, ज, ड, द, न, प, त …..) आए, तो उस आने वाले व्यंजन के साथ वही व्यंजन उसमें “हल् या हलन्त्” के रूप में एक और जुड़ जाते हैं ।तथा “त् या द्” लुप्त हो जाता है “।
जैसे :- उत् + चारण = उच्चारण ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘च‘ का मेल हुआ है, एवं ‘त्‘ – “च्” में बदल गया । जिससे “च्च” का निर्माण हुआ ) ।
सत् + जन = सज्जन ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘ज‘ का मेल हुआ है, एवं ‘त्‘ – “ज्” में बदल गया । जिससे “ज्ज” का निर्माण हुआ ) ।
विपद् + जाल = विपज्जाल ।
(अतः यहाँ ‘द्‘ के साथ ‘ज‘ का मेल हुआ है, एवं ‘द्‘ – “ज्” में बदल गया । जिससे “ज्ज” का निर्माण हुआ ) ।
नियम -(6)
“यदि संधि-विच्छेद ( Sandhi Vichchhed ) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण “त् या द्” हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण “श्” हो, तो ‘त्‘ या ‘द्‘ का “च्” एवं ‘श्‘ का “छ्” हो जाता है “।
जैसे :- उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘श‘ का मेल होने से ‘त्‘ – “च्” में एवं ‘श्‘ – “छ्” में बदल गया ।)
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘श‘ का मेल होने से ‘त्‘ – “च्” में एवं ‘श्‘ – “छ्” में बदल गया ) आदि ।
नियम – (7)
“यदि संधि-विच्छेद ( Sandhi Vichchhed ) का प्रथम पद का अंतिम उच्चारण ‘त्’ या ‘द्’ एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण ‘ह्’ या ‘घ्’ हो , तो ‘त्‘ या ‘द्‘ के स्थान पर- “द्” और ‘ह्‘ के स्थान पर- “घ्” हो जाता है । लेकिन ‘घ्‘ का — “घ” ही रह जाता है “।
जैसे :- उद् + हरण = उद्धरण ।
(अतः यहाँ ‘द्‘ के साथ ‘ह‘ का मेल होने से ‘द्‘ – “द्” में एवं ‘ह‘ – “घ्” में बदल गया ।)
तत् + हित = तद्घित ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘ह‘ का मेल होने से ‘त्‘ – “द्” में एवं ‘ह‘ – “घ्” में बदल गया ।)
उत् + घाटन = उद्घाटन ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘घ‘ का मेल होने से ‘त्‘ – “द्” में बदल गया एवं ‘घ‘ – “घ्” ही रह गया ।)
उत् + घोष = उद्घोष ।
(अतः यहाँ ‘त्‘ के साथ ‘घ‘ का मेल होने से ‘त्‘ – “द्” में बदल गया एवं ‘घ‘ – “घ्” ही रह गया ) आदि ।
नियम – (08)
“यदि संधि-विच्छेद ( Sandhi Vichchhed ) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण ‘त्’ या ‘द्’ हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण ‘झ’ हो, तो ‘त्‘ या ‘द्‘ का — “ज्” हो जाता है “।
जैसे :- उद् + झटिका = उज्झटिका ।
(अतः यहाँ ‘द्‘ के साथ ‘झ‘ का मेल होने से ‘द्‘ – “ज्” में बदल गया एवं ‘झ‘ – “झ्” ही रह गया ) आदि ।
नियम -(09)
“यदि संधि-विच्छेद ( Sandhi Vichchhed ) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण ह्रस्व स्वर (अ, इ, उ) हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण “छ” आए , तो ‘छ‘ का –“च्छ” में बदल जाता है” ।
जैसे :- छत्र + छाया = छत्रच्छाया ।
(अतः यहाँ ‘अ‘ के साथ ‘छ‘ का मेल होने से ‘छ‘ – “च्छ” में बदल गया ।)
परि + छेद = परिच्छेद ।
(अतः यहाँ ‘इ‘ के साथ ‘छ‘ का मेल होने से ‘छ‘ – “च्छ” में बदल गया ।)
आ + छादन = आच्छादन ।
(अतः यहाँ ‘आ‘ के साथ ‘छ‘ का मेल होने से ‘छ‘ – “च्छ” में बदल गया ।)
अनु + छेद = अनुच्छेद ।
(अतः यहाँ ‘उ‘ के साथ ‘छ‘ का मेल होने से ‘छ‘ – “च्छ” में बदल गया ) इत्यादि ।
नियम – (10)
“यदि संधि-विच्छेद ( Sandhi Vichchhed ) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण ‘ष्’ हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण ‘त’ या ‘थ’ आए, तो ‘त‘ का — “ट्” तथा ‘थ‘ का — “ठ्” हो जाता है “।
जैसे :- उत्कृष् + त = उत्कृष्ट ।
(अतः यहाँ ‘ष्‘ के साथ ‘त‘ के मिलने से ‘त‘ का – “ट्” में परिवर्तन हुआ है ।)
द्रष् + ता = द्रष्टा ।
(अतः यहाँ ‘ष्‘ के साथ ‘त‘ के मिलने से ‘त‘ का – “ट्” में परिवर्तन हुआ है ।)
काष् + था = काष्ठा ।
(अतः यहाँ ‘ष्‘ के साथ ‘थ‘ के मिलने से ‘थ‘ का – “ठ्” में परिवर्तन हुआ है ।)
षष् + थ = षष्ठ ।
(अतः यहाँ ‘ष्‘ के साथ ‘थ‘ के मिलने से ‘थ‘ का – “ठ्” में परिवर्तन हुआ है ) इत्यादि ।
नियम – (11)
“यदि संधि-विच्छेद (Sandhi Vichchhed) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण ‘म्’ हो और दूसरी पद का प्रथम उच्चारण अंतःस्थ व्यंजन वर्ण (य, र, ल एवं व) आए , तो “म्“, अनुस्वार में बदल जाता है “।
जैसे :- सम् + योग = संयोग ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘य‘ के मिलने से ‘म्‘ का – “अनुस्वार” में परिवर्तन हुआ है ।)
सम् + रक्षण = संरक्षण ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘र‘ के मिलने से ‘म्‘ का – “अनुस्वार” में परिवर्तन हुआ है ।)
सम् + लाप = संलाप ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘ल‘ के मिलने से ‘म्‘ का – “अनुस्वार” में परिवर्तन हुआ है ।)
सम् + वाद = संवाद ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘व‘ के मिलने से ‘म्‘ का – “अनुस्वार” में परिवर्तन हुआ है ) आदि ।
नियम- (12)
“यदि प्रथम पद का अंतिम उच्चारण “म्” हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण उष्म व्यंजन वर्ण (श, ष, स तथा ह) आए, तो “म्“– “अनुस्वार” में बदल जाता है “।
जैसे:- सम् + शय = संशय ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘श‘ के मेल से “म्” –“अनुस्वार ” में बदल गया ।)
सम् + सार = संसार ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘स‘ के मेल से “म्” –“अनुस्वार ” में बदल गया ।)
सम् + हार = संहार ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘ह‘ के मेल से “म्” –“अनुस्वार ” में बदल गया ) आदि ।
* नोट(Note) :- (i) यदि प्रथम पद के अंतिम उच्चारण “म्” हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण कोई स्पर्श व्यंजन वर्ण (क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग तथा प वर्ग) आए, तो “म्” के बदले उसी वर्ग का पंचमाक्षर लिखा जा सकता है।
जैसे :- सम् + कल्प = सङ्कल्प ।
(अत: यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘क‘ के मेल से ‘म्‘ — “ङ्” में बदल गया ।)
सम् + चय = सञ्चय ।
(अत: यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘च‘ के मेल से ‘म्‘ — “ञ्” में बदल गया ) इत्यादि ।
(ii) यदि ‘म्’ के बाद “म” आए, तो अनुस्वार न देकर द्वित्व (जोड़ा – म्म) का प्रयोग करें ।
जैसे :- सम् + मति = सम्मति ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘म‘ के मेल से “म्म” का निर्माण हुआ। )
सम् + मान = सम्मान ।
(अतः यहाँ ‘म्‘ के साथ ‘म‘ के मेल से “म्म” का निर्माण हुआ ) इत्यादि ।
नियम – (13)
“यदि संधि-विच्छेद ( Sandhi Vichchhed ) के प्रथम पद का अंतिम उच्चारण ऋ, र्, ष् हो एवं दूसरी पद का प्रथम उच्चारण ‘न’ अथवा दोनों के बीच कोई भी स्वर वर्ण या ‘क वर्ग’ , ‘प वर्ग’ अथवा य् या र् या व् में से कोई हो , तो “न” के स्थान पर “ण” हो जाता है “।
जैसे :- ऋ + न = ऋण ।
(अतः यहाँ ‘ऋ‘ के साथ ‘न‘ के मेल से ‘न‘ –“ण” में बदल गया ।)
कृष् + न = कृष्ण ।
(अतः यहाँ ‘ष्‘ के साथ ‘न‘ के मेल से ‘न‘ –“ण” में बदल गया ।)
तृष् + ना = तृष्णा ।
(अतः यहाँ ‘ष्‘ के साथ ‘न‘ के मेल से ‘न‘ –“ण” में बदल गया ।)
भूष् + अन = भूषण ।
(अतः यहाँ ‘ष्‘ के साथ ‘अ‘ का मेल हुआ है तथा ‘ष्‘ एवं ‘न‘ के बीच “अ” स्वर आने से ‘न‘ –“ण” में बदल गया ।)
भर् + अन = भरण ।
(अतः यहाँ ‘र्‘ के साथ ‘अ‘ का मेल हुआ है तथा ‘र्‘ एवं ‘न‘ के बीच “अ” स्वर आने से ‘न‘ –“ण” में बदल गया ।)
नियम- (14)
“अकार अथवा आकार को छोड़कर किसी स्वर ( इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ या औ ) के बाद ‘स’ या ‘स्’ हो, तो ‘स’ अथवा ‘स्‘ का — “ष” हो जाता है ।”
जैसे :- वि + सम = विषम ।
(अतः यहाँ ‘इ‘ के साथ ‘स‘ के मेल से ‘स’ –“ष” में बदल गया ।)
अभि + सेक = अभिषेक ।
(अतः यहाँ ‘इ‘ के साथ ‘स‘ के मेल से ‘स’ –“ष” में बदल गया ।)
सु + सुप्ति = सुषुप्ति ।
(अतः यहाँ ‘उ‘ के साथ ‘स‘ के मेल से ‘स’ –“ष” में बदल गया ।) इत्यादि ।
संपूर्ण संधि के क्रमबद्ध जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करे |
आशा करते हैं कि आपको इस ब्लॉग से व्यंजन संधि किसे कहते है ( Vyanjan Sandhi kise kahate hain ),व्यंजन संधि के उदाहरण, व्यंजन संधि के भेद , व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi )के नियम के बारे में जानकारी प्राप्त हुई होगी। व्यंजन संधि से जुड़े हुए अन्य महत्वपूर्ण और रोचक ब्लॉग पढ़ने के लिए kamlaclasses.com के साथ बने रहिए।
इसी तरह के अन्य लेख (Post) पढ़ने के लिए kamlaclasses.com के साथ बनें रहें और kamla class के Facebook एवं Instagram के पेज को भी Follow करें समय पर सभी नए लेख के Notification पाने के लिए । धन्यवाद !
5 thoughts on “व्यंजन संधि किसे कहते हैं ? उदाहरण, भेद, नियम आदि | Vyanjan Sandhi”