हिंदी व्याकरण किसे कहते हैं? || Hindi Vyakaran || Hindi Grammar

हिंदी व्याकरण किसे कहते हैं? (Hindi Vyakaran Kise Kahate Hiain) Hindi Vyakaran की परिभाषा, महत्व, विशेषता, भेद, अर्थ |

हिंदी व्याकरण (Hindi Vyakaran ) हिंदी हमारे देश की राज्यभाषा है और हिंदी व्याकरण हिन्दी भाषा की महत्वपूर्ण आधार है । हिंदी भाषा को शुद्ध रूप से पढ़ने, लिखने एवं बोलने संबंधी नियमों को जानने के लिए हिंदी व्याकरण (HIndi Vyakaran)अच्छे तरिके से समझना अत्यंत जरूरी है और यह website आपको हिंदी व्याकरण को समझने में पूर्ण रूप से मदद करेगी ।

यहाँ हिंदी व्याकरण (Hindi Vyakaran )और हिंदी व्याकरण के अंग, परिभाषा, भेद, हिंदी व्याकरण की उत्पत्ति आदि से संबंधित सभी टाॅपिक को छोटे-छोटे भागों में वर्गीकृत करके उदाहरण सहित समझाया गया है ।

व्याकरण  का अर्थ (Vyakaran Ka Arth )

“वह शाखा जिसमें किसी भाषा के स्वरूप, शब्दों, रूपों, प्रयोगों आदि का विवेचना होता है ।

व्याकरण क्या है? (What is Grammar?)

किसी भी भाषा के अंग – प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन ही व्याकरण है।”

“अथवा”

चलिए दोस्तों अब अन्य शब्दों में व्याकरण क्या है ? समझते हैं
वह शास्त्र जिसमें किसी भाषा के स्वरूप, शब्दों, रूपों, प्रयोगों, आदि का अध्ययन करते हैं ,यही व्याकरण है ।

“अथवा”

व्याकरण क्या है (Vyakaran Kya hain) ?

“भाषा और व्याकरण में रोगी व चिकित्सा के समान संबंध होता है। लेकिन किसी भी भाषा का प्रादुर्भाव (उत्पत्ति) पहले होता है, और व्याकरण उसके पीछे-पीछे चलता है। भाषा मानक हो तथा इसमें एकरूपता रहें इसके लिए कुछ नियम बनाए जाते हैं, यही नियम व्याकरण है।

 

अन्य शब्दों में व्याकरण क्या है (Vyakaran Kya hai) ?

-भाषा की मानक लिपि क्या हो, वर्णों या अक्षरों का कैसा संयोजन हो, शब्दों की रचना कैसे हो, वाक्यों की संरचना कैसे हो, वाक्यों की संरचना में किन-किन बातों का ख्याल रखा जाए, इससे सम्बद्ध हुए भाषा का अपना अलग-अलग नियम होता है। इन सबों की व्याख्या और सुव्यवस्थित करना ही व्याकरण कहलाता है।

व्याकरण किसे कहते हैं (Vyakaran Kise Kahate Hain) ?

“जिस  शास्त्र को अध्ययन करने से शुद्ध-शुद्ध पढ़ना, लिखना, एवं बोलना आवें, उसे व्याकरण कहते हैं।”

हिंदी व्याकरण किसे कहते हैं ?

व्याकरण का दूसरा नाम क्या है ?
व्याकरण का दूसरा नाम “शब्दानुशासन” है ।

व्याकरण शब्द कहां से आया है ?
व्याकरण शब्द “प्राचीन यूनान” से आया है

व्याकरण के कितने अंग होते हैं (Vyakaran Ke Bhed)?

व्याकरण के निम्नांकित की तीन (03) अंग होते हैं :-
1.वर्णविचार
2.शब्द विचार
3.वाक्य विचार

Q. व्याकरण का “पिता या जनक” कौन है ?

उत्तर:- “व्याकरण का पिता या जनक “श्री दामोदर पंडित” जी को कहा जाता है।”

 

Q. व्याकरण शब्द कौन-सी संज्ञा है (Vyakaran Shabd kaun si sanjna hai) ?

उत्तर:- “भाववाचक संज्ञा।”

 

व्याकरण की विशेषताएं (Vyakaran Ki Visheshatae) ?

1.भाषा के स्पष्ट नियमबद्ध तथा मानक रूप की जानकारी प्रदान करता है ।
2.व्याकरण शुद्ध एवं अशुद्ध शब्दों का विस्तृत ज्ञान देकर उचित प्रयोग करना सीखता  है ।
3.इसे अध्ययन कर हम कठिन से कठिन भाषा को सरल बना सकते हैं ।
4.व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा हम किसी भी भाषा को शुद्ध-शुद्ध बोलना, पढ़ना, लिखना एवं समझना आता है।

 

Q. व्याकरण विद्या का जन्म सबसे पहले कहां हुआ था ?

उत्तर:-  “भारत में ।”


Q. विश्व का सबसे प्राचीन व्याकरण कौन है ?

उत्तर:-  “संस्कृत व्याकरण ।”

 

हिंदी (Hindi):-

हिंदी का अर्थ (meaning of hindi) – हिंदी “सिंधु” शब्द ईरानी में जाकर “हिंदू” से हिंदी और फिर हिन्द हो गया । बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत में अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा “हिंद” शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया । इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द + ईक) ‘हिंदीक” बना जिसका अर्थ है “हिंद का” ।

Q. हिंदी शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है (Hindi shabd ki uttpati kis shabd se hui hai) ?

उत्तर:- “हिंदी शब्द की उत्पत्ति “सिंधु” शब्द से हुई है।”

 

Q. हिंदी शब्द किस भाषा का शब्द है (Hindi shabd kis bhasha ka Shabd hai) ?

उत्तर:– “ फारसी भाषा का। “

हिंदी भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई ?

अनेक विद्वानों के मातानुसार हिंदी भाषा “संस्कृत” से निष्पन्न (जन्म हुआ) है, परंतु यह बात सत्य नहीं है हिंदी की उत्पत्ति “अपभ्रंश” भाषाओं से हुई है। और “अपभ्रंश” की उत्पत्ति “प्राकृत” भाषा से प्राकृत भाषा अपने पहले की पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है । इससे यह स्पष्ट होता है कि आर्यों की पुरानी भाषा संस्कृत थी ।

उनके नमूने “ऋग्वेद” में दिखते हैं । उसका विकास होते-होते कई प्रकार की “प्राकृत भाषएँ” पैदा हुई । हमारी विशुद्ध संस्कृत किसी पुरानी संस्कृत से ही परिमार्जित हुई है । प्राकृत भाषओं के बाद “अपभ्रंश” का जन्म हुआ और उनसे वर्तमान संस्कृतोत्पन्न भाषाओं की हमारी वर्तमान हिंदी अर्द्धमागधी और “शौरसेनी” अपभ्रंश से निकली है।

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अतः भारतीय भाषा के इतिहास में 500 ई से 2000 ई तक के काल को “अपभ्रंश काल” कहा जाता है । आधुनिक आर्य भाषाओं (हिंदी, बांग्ला, गुजराती, मराठी, पंजाबी, उर्दू, उड़िया आदि) की उत्पत्ति इन्हीं अपभ्रंशों से हुई है। एक प्रकार से ये अपभ्रंश भाषाएँ प्राकृत भाषाओं और आधुनिक भारतीय भाषाओं के बीच की कड़ियां है । प्राकृत भाषाओं की तरह अपभ्रंश के परिनिष्ठित रूप का विकास मध्यदेश से हुआ था।

इस पर अन्य रूपों का प्रभाव भी पड़ा हिंदी का जन्म इसी मध्यदेश में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के योग से हुआ है ।इस प्रकार उत्तर भारत में “अपभ्रंश” के सात भेद या रूप प्रचलित थे । जिनसे आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ । यह सात प्रकार के अपभ्रंश इस प्रकार हैं, जिनके सामने उससे जन्मी आधुनिक भाषाओं के नाम का उल्लेख किया गया है।

अपभ्रंश आधुनिक भारतीय भाषाएँ

1.शौरसेनी अपभ्रंश————– पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली।

2. पैशाची अपभ्रंश—————लहरदार, पंजाबी ।

3. ब्राचड़ अपभ्रंश—————-सिंधी ।

4. खस अपभ्रंश—————–पहाड़ी, कुमाऊँनी, गढ़वाली।

5. महाराष्ट्री अपभ्रंश————-मराठी ।

6. अर्ध मागधी अपभ्रंश———-पूर्वी हिंदी, अवधि, बोघली, छत्तीसगढ़ी ।

7.मागधी अपभ्रंश————– बिहारी, बंगाली, उड़िया, असामिया।

हिंदी भाषा का संक्षिप्त परिचय (हिंदी का नामकरण)

हिंदी भाषा का जन्म उत्तर भारत में हुआ, पर उसका नामकरण ईरानियों और भारत के मुसलमानों ने किया। यह बात कुछ ऐसी ही है कि बच्चा हमारे घर जन्मे और उसका नामकरण हमारे पड़ोसी करें । वस्तुतः हिंदी किसी संप्रदाय या धर्म की भाषा नहीं है, इसपर सबका अपना अधिकार है। हिंदी नामकरण की एक बड़ी ही दिलचस्प कथा है। उसका विवरण निम्न है –

आठवीं सदी से आज तक हिंदी को तीन अर्थों में ग्रहण किया गया है -1.व्यापक अर्थ में, 2.सामान्य अर्थ में और 3.विशिष्ट अर्थ में । जब तक मुसलमान भारत में नहीं आए, तब तक हिंदी शब्द का प्रयोग “व्यापक अर्थ” में होता रहा । व्यापक अर्थ में हिंदी हिंद या भारत से संबंध किसी भी व्यक्ति, वस्तु तथा हिंद या भारत में बोली जाने वाली किसी भी आर्य, द्रविड़ या अन्य भारतीय भाषाओं के लिए प्रयुक्त होती थी ईरानियों की प्राचीनतम धर्म पुस्तक “अवेस्ता” मैं हिंदी ‘हिंदू’ आदि शब्द मिलते हैं ।

मध्यकालीन ईरान में ‘हिन्द्’ में ‘ईक्’ विशेषण-प्रत्यय लगाकर ‘हिंदीक्’ फिर “हिंदीग्” शब्द बना। कालांतर में अंतिम व्यंजन कलुप्त हो गया और ‘हिंदी’ शब्द हिंद के विशेषणरूप से प्रचलित हुआ।प्रारंभ में ‘हिंदी’ शब्द देशबोधक था। कुछ लोग ‘हिंदी’ का संबंध ‘सिंधी’ से जोड़ते हैं, क्योंकि ईरानी लोग ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ की तरह करते थे । आठवीं सदी तक ईरानियों द्वारा ‘हिंदी’ शब्द का ऐसा ही प्रयोग होता था।ईरान से ही ‘हिंद’और ‘हिंदी’ शब्द अरब, मिस्र, सीरिया तथा अन्य देशों को प्राप्त हुए, किंतु इस प्राचीन व्यापक अर्थ में ‘हिंदी’ शब्द का प्रयोग अब नहीं होता।

भारतीय संविधान ने इस शब्द का ग्रहण भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में किया है ।भारत के प्राचीन गंथों में ‘हिंदी’, ‘हिंद’ और ‘हिंदू’ शब्दों का प्रयोग नहीं मिलता । की भाषा को “जबान-ए-हिंद” की संज्ञा दी है। ‘हिंदी’ का यह प्रयोग भारत की समस्त भाषओं – संस्कृत ,पाली ,प्राकृत ,अपभ्रंश – के लिए हुआ है। स्पष्ट है कि ‘हिंदी’ शब्द का प्रयोग देश के बाहर दो अर्थों में हुआ – एक, देश के अर्थ में और दूसरा, भारतीय भाषाओं के अर्थ में ।

आज ये दोनों अर्थ पुराने पड़ चुके हैं और अपना महत्व खो चुके हैं ।भाषा के अर्थ में ‘हिंदी’ शब्द का प्रयोग संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि किसी प्राचीन भारतीय आर्यभाषा में नहीं हुआ है । मध्ययुग में भारतीय परंपरा के कवियों ने प्राचीन भाषाओं की तुलना में अपनी कविता की भाषा को प्रायः ‘भाषा’ या ‘भाखा’ नाम से पुकारा है।

कबीर कहते हैं- संस्कीरत है कूप जल, भाषा बहता नीर । तुलसीदास ने कहा – ‘का भाषा का संस्कृत, प्रेम चाहिए साँच।‘ किंतु मुस्लिम परंपरा के कवियों और विद्वानों ने उत्तर भारत की मध्यकालीन जनभाषा को प्रायः हिंदवी शब्द से संबोधित किया है। 13वीं सदी में भारत के फारसी कवि औफी(1228) ने सर्वप्रथम ‘हिन्दवी’ शब्द का प्रयोग हिंद कि संभवत मध्यदेश की देशी भाषा के लिए किया था। इसी प्रकार अन्य मुस्लिम कवियों -मसऊत, अबुल हसन, अमीर खुसरो आदि ने देशी भाषा को ‘हिंदी’ या ‘हिन्दवी’ ‘हिन्दवी’ या ‘हिंदुई’ नाम दिया है ।

खुसरो ने लिखा है – “तुर्क-हिंदुस्तानिंदय मैं हिंदवी गोषय जवाबे ।…..जुज वै चंद नज्म हिंदी नीर नज्जर देस्तान करदा शुदा अस्त।“ खुसरो की ‘खालिकबारी’में हिंदवी शब्द 30 बार और ‘हिंदी’ शब्द 5 बार देशी भाषा के लिए प्रयुक्त हुआ है । सोलहवीं सदी के मुस्लिम कवि जायसी ने भी ‘हिंदवी’का प्रयोग किया है –

तुर्की, अरबी, हिंदवी, भाषा तेती आहि।
जामे मारग प्रेम का, सबै सराहैं ताहि ।।

लगता है, कि दिल्ली से अवधप्रदेश तक की देशी भाषा ‘हिन्दी’ या ‘हिंदवी’ नाम से प्रचलित होने लगी थी ।अकबर के दरबारी कवि रहीम को ‘हिन्दी’ कवि कहा गया है ।अनुमान है, कि मध्ययुग में देशी भाषा के अर्थ में ‘भाखा’, ‘हिंदी’ और ‘हिंदवी’ शब्द समानार्थक बन चुके थे ।

दक्षिण के 16वीं 17वीं सदी के मुस्लिम कवियों ने भी (जिन्हें दक्खिनी हिंदी के कवि कहते हैं) ‘हिंदी’ शब्द का प्रयोग बहुत अधिक किया है। शाही मीरा जी कहते हैं – यों देखत हिंदी बोल प्रन माने हैं नपतोल । 17वीं सदी में दक्खिन के सुप्रसिद्ध कवि मुल्ला वजही ने अपने ‘सबरस’ की भूमिका में हिंदी का ही प्रयोग किया है । डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा का मत है कि 17वीं सदी तक ‘हिंदी’ और ‘हिंदवी’ शब्द समानार्थक थे और सामान्यतः मध्यदेश की भाषा के लिए प्रयुक्त होते थे।

उक्त विवेचन से स्पष्ट है, कि हिंदी का नामकरण भारत के हिंदुओं ने नहीं ईरान और अरब से आए और इस देश में बसे मुसलमानों ने किया था । लेकिन, मुसलमानों ने, हिंदी – प्रदेश में फैली विभिन्न बोलियां को न अपना कर दिल्ली और मेरठ की बोली ‘खड़ीबोली’ को अधिक प्रश्रय दिया । इसके विपरीत हिंदुओं ने ब्रजभाषा, अवधी तथा अन्य देसी भाषओः में अधिक रचनाएँ की । बाद में ये लोग भी मुसलमानों के मार्ग पर चलें ।

इससे सिद्ध होता है कि देश के मुसलमान ने जिस अर्थ में देशी भाषा (खड़ीबोली) को ग्रहण किया । वही हिंदी की सही दिशा थी । आज हिंदी का अर्थ खड़ीबोली या उनमें लिखा जानेवाला साहित्य ही समझा जाता है । इस हिंदी में को हमारे साधु-संतों ने देश के भिन्न – भिन्न भागों में फैला दिया था । आतः यह धीरे-धीरे सारे देश में रस बस गई ।

हिंदी शब्द का प्रयोग एक विशिष्ट शैली के अर्थ में भी होता है । प्रारंभ में हिंदी फारसी और देवनागरी दोनों लिपियों में लिखी जाती थी । कुछ मुसलमानों ‘हिंदी’ या ‘हिंदवी’ की उसे शैली का भी प्रचार किया, जिसकी परंपरा फारसी लिपि और उच्चारण में दिल्ली के आसपास वर्तमान थी । दक्खिनी हिंदी के मुसलमान कवियों ने हिंदी को एक विशिष्ट शैली में ढाला, जो आगे चलकर उर्दू की चीज समझी जाने लगी ।

हिंदुओं और मुसलमानों का राजनीतिक विरोध ज्यों-ज्यों बढ़ता गया, हिंदी मुसलमानों से दूर होती गई और उसके स्थान पर एक नई भाषा ‘उर्दू’ गढ़ ली गई, जिसे बाद में हिंदीवालों ने हिंदी कि ही एक विशेष शैली मान लिया । राजनीतिक तथा सांप्रदायिक विरोध का परिणाम यह हुआ कि भारत के मुसलमान कवियों ने हिंदी को फारसी के साँचे में ढालकर उसका नया नाम “रेखता” रखा । यह बात 18वीं सदी के उत्तरार्ध में हुई ।

अब हिंदी फारसी शैली में पनपने लगी ।भारत में जब अंग्रेज आए और 1800 से हिंदी को ‘हिंदुस्तानी’ की संज्ञा दी गई, तब भाषा – संबंधी एक नई उलझन पैदा कर दी गई । पर, हिंदी अपने वास्तविक रूप में स्थापित हो चुकी है । यदि भारत का नाम हिंद है, तो इस देश की राष्ट्रभाषा का नाम ‘हिंदी’ ही होगा । हमारे देश का नाम हिंदुस्तान नहीं हो सकता, क्योंकि यह देश केवल हिंदुओं का नहीं है । ऐसी स्थिति में देश की राष्ट्रभाषा को हिंदुस्तानी की संज्ञा नहीं दी जा सकती ।

डॉक्टर सुनीतिकुमार चटर्जी के शब्दों में ,’हिंदी एक महान संपर्क – साधक भाषा है ।बंगाल के सुधी महापुरुषों ने भी इसकी गौरव – गरिमा को पहचाना था । 1875 में बाबू केशवचंद्र सेन ने लिखा – हिंदी भाषा प्रायः सर्वत्र – ई प्रचलित । बाबू बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1876 में ‘बंगदर्शन’ में लिखा – ‘हिंदी शिक्षा ना करीले, कोनो क्रमे-ई चलिये नाम ।

निष्कर्ष यह है, कि हिंदी भारत की सामान्य जनता की भाषा है, देश की एकता की संपर्क-भाषा है, साधु-संतों की भाषा है और देश की केंद्रीय शक्ति है । ऐसी विकसित भाषा का ‘सीमित क्षेत्र’ नहीं हो सकता ।

 

हिंदी का महत्व (Hindi Ka Mahattv)

संसार में कुल मिलाकर लगभग 2800 (अटठाईस सौ )भाषाएं हैं , जिनमें 13 (तेरह) ऐसी भाषाएं हैं, जिनके बोलनेवालों की संख्या 60 (साठ) करोड़ से अधिक है। संसार की भाषाओं में हिंदी भाषा को तृतीय स्थान प्राप्त है । इसके बबोलेवालों की संख्या 30 (तीस) करोड़ के आसपास है । भारत के बाहर (बर्मा, श्रीलंका, मॉरीशस, ट्रिनिडाड, फिजी, मलाया, सूरीनाम, दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका) भी हिंदी बोलनेवालों की संख्या काफी है। एशिया महादेश की भाषाओं में हिंदी ही एक ऐसी भाषा है, जो अपने देश के बाहर बोली और लिखी जाती है ।

हिंदी हमारे देश में युग-युग से विचार-विनिमय का माध्यम रही है । यह केवल उत्तर भारत की भाषा नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के प्राचीन आचार्यों – वल्लभाचार्य, विट्ठल, रामानुज, रामानंद, आदि – ने भी इसी भाषा के माध्यम से अपने सिद्धांतों और मतों का प्रचार किया था । अहिंदीभाषी राज्यों के संत कवियों (आसाम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के नामदेव, और ज्ञानेश्वर गुजरात के नरसी मेहता, बंगाल के चैतन्य आदि) ने इसी भाषा को अपने धर्म और साहित्य का माध्यम बनाया ।

आज हिंदी किसी-न-किसी रूप में पूरे देश में प्रचलित है ।हिंदी एक जीवित और सशक्त भाषा है । इसने अनेक देशी और विदेशी शब्दों को अपनाया है ।  इसकी पाचन – शक्ति कमजोर नहीं है । इसने अन्य भाषाओं की ध्वनियों, शब्दों, मुहावरों और कहावतें को अपने अंदर पचाया है । इस प्रकार हिंदी ने अपने शब्द-भंडार और अपनी अभिव्यक्ति को समृद्ध किया है ।

हिंदी एक जीवित भाषा है। इसका प्रचार-प्रसार बढ़ता जा रहा है । हिंदी एक सरल भाषा है । जिसके कारण इसका व्यवहार देश के कोने-कोने में हो रहा है।

हिंदी की विशेषताएं (Hindi Ki Visheshtae)

1.अन्य भारतीय भाषाओं की तरह हिंदी भी संस्कृत पर आघृत (आधार पर टिका) है ।
2. इसकी अपनी प्रकृति है, पर इसने संस्कृत का अंधानुकरण नहीं किया ।
3. इसमें संस्कृत वर्णमाला और उच्चारण को अपनाया है और संस्कृत की अधिकतर ध्वनियों को ग्रहण किया है ।
4. संस्कृत वांङ्मय में देवनागरी लिपि में लिखित है । हिंदी में भी इस लिपि को स्वीकार किया है ।
5. इसमें ध्वनि प्रतीकों – ‘स्वर और व्यंजन” का क्रम वैज्ञानिक है ।

 

Q. हिंदी क्या हैं (Hindi Kya Hain) ?

उत्तर:- “हिंदी 14 सितंबर 1949 ईस्वी में स्वीकृत भारत का राज्य भाषा है, जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।”

 

Q. हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ?

उत्तर:-  “14 सितंबर को ।”

 

Q. “हिंदुस्तान” शब्द का प्रयोग प्रथमत: किसने किया था ?

उत्तर:-  “बाबर ने ।”

हिंदी व्याकरण किसे कहते हैं? (Hindi Vyakaran Kise Kahate Hai)?

“जिस शास्त्र को अध्ययन करने से हिंदी शुद्ध-शुद्ध पढ़ना, लिखना एवं बोलना आवें, उसे हिंदी व्याकरण कहते हैं।”
जैसे –
आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना, सहज हाईस्कूल हिंदी व्याकरण और रचना आदि ।

हिंदी व्याकरण के कितने भेद हैं (Hindi Vyakaran Ke Kitne Bhed hain) ?

हिंदी व्याकरण के निम्नांकित पांच भेद हैं ?
1.वर्ण विचार
2.शब्द विचार
3.वाक्य विचार
4.चिन्ह विचार
5.छंद विचार ।

 

1. वर्ण विचार किसे कहते हैं (Varnvichar kise kahte hain) ?

“हिंदी व्याकरण के जिस भाग में वर्णों (अक्षरों) के आवृत्ति, उच्चारण, भेद,आकर, प्रकार एवं लेखन आदि का वर्णन हो, उसे वर्ण विचार कहते हैं।”

 

2. शब्द विचार किसे कहते हैं (Shabd vichar kise kahte hain) ?

“हिंदी व्याकरण के जिस भाग में शब्दों की परिभाषा, भेद – उपभेद, संधि, विच्छेद, रूपांतरण, निर्माण एवं प्रयोग आदि का वर्णन हो, उसे शब्द विचार कहते हैं।”

 

3. वाक्य विचार किसे कहते हैं (Vakya Vichar Kise Kahte Hain) ?

“हिंदी व्याकरण के जिस भाग में वाक्यों के व्यवहार, प्रयोग, भाव आदि का वर्णन हो, उसे वाक्य विचार कहते हैं।”

 

4. चिन्ह विचार किसे कहते हैं (Chinhvichar kise kahte Hain) ?

“हिंदी व्याकरण के जिस भाग में चिन्हों के प्रकार, प्रयोग, महत्व आदि का वर्णन हो, उसे चिन्ह विचार कहते हैं।”

 

5. छंद विचार किसे कहते हैं (Chandvichar Kise Kahte Hain) ?

“हिंदी व्याकरण के जिस भाग में छंदों के रचना, प्रकार, भेद, महत्व आदि का वर्णन हो ,उसे छंद विचार कहते हैं।”

 

हिंदी व्याकरण की विशेषताएं (Hindi Vyakaran Ki Visheshtae) ?

1.हिंदी व्याकरण संस्कृत व्याकरण पर आधारित होते हुए भी अपनी कुछ स्वतंत्र विशेषताएं रखता है ।
2.हिंदी को संस्कृत की उत्तराधिकारी मिला है ।
3.इसमें संस्कृत व्याकरण की देन भी कम महत्वपूर्ण नहीं है ।

4. पंडित किशोरी दास वाजपेयी ने लिखा है, कि हिंदी ने अपना व्याकरण प्रयाः संस्कृत व्याकरण के आधार पर नहीं बनाया है – क्रिया प्रवाह एकांत संस्कृत व्याकरण के आधार पर है ,पर कहीं-कहीं मार्ग के भेद भी है, मार्ग भेद यही हुआ है जहां हिंदी में संस्कृत की अपेक्षा सरलतर मार्ग ग्रहण किया है ।

मेरे प्रिय पाठकों मैं आशा करता हूँ, कि उक्त लिखित post में आपने समझा हिंदी व्याकरण का परिभाषा (Hindi Vyakaran ka paribhasha), हिंदी व्याकरण के उदाहरण, हिंदी व्याकरण (HIndi Vyakaran )भेद, हिंदी व्याकरण के अर्थ, अंग, हिंदी व्याकरण कि उत्पत्ति, हिंदी व्याकरण का परिभाषा, हिंदी भाषा कि उत्पत्ति, हिंदी शब्द कि उत्पत्ति, हिंदी व्याकरण के विशेषता आदि को क्रमबद्ध और सरल व सहज ढंग से समझे होंगे ।

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