Class 10th Sanskrit Chapter 1 – मङ्गलम् (Mangalam): Bihar Board

Class 10th Sanskrit Chapter 1 - मङ्गलम् (Mangalam) संस्कृत पीयूषम भाग- 2

प्रिय पाठकों, इस लेख में Bihar Board के Class 10th Sanskrit Chapter 1, (वर्ग – 10, संस्कृत का अध्याय – 1) का मङ्गलम् (Mangalam) के सभी श्लोकों का संधि-विच्छेद, शब्दार्थ, श्लोकार्थ, और वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर के साथ Bihar Board Exam में पूछे जानेवाली 16 अंक के सभी प्रश्नों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। साथ ही, किताब के सभी वस्तुनिष्ठ और लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर भी प्रदान किए गए हैं। यह Post आपके Bihar Board Exam की तैयारी में अत्यंत उपयोगी साबित होगी।

Class 10th Sanskrit Chapter 1 - मङ्गलम् (Mangalam)

मङ्गलम् (Mangalam):  “मङ्गलम्” शब्द का अर्थ “शुभ या कल्याणमय” होता है । क्योंकि हमारे भारतीय सभ्यता में किसी भी मंगल कार्य करने से पूर्व मंगल ध्वनि क्या मंगल मंत्र का शुभ उच्चारण किया जाता है ।

[ उपनिषदः वैदिकवाङ्मयस्य अन्तिमे भागे दर्शनशास्त्रस्य सिद्धान्तान् प्रकटयन्ति। सर्वत्र परमपुरूषस्य परमात्मनः महिमा प्रधानतया गीयते । तेन परमात्मना जगत् व्याप्तमनुशासितम् चास्ति। स एव सर्वेषां तपसां परमं लक्ष्यम्। अस्मिन् पाठे परमात्मपरा उपनिषदाम् पद्यात्मकाः पञ्च मन्त्राः संकलिताः सन्ति ।]

संधि-विच्छेद :-

  • व्याप्तमनुशासितम् – व्याप्तम् + अनुशासितम् ।
  • चास्ति – च + अस्ति ।

शब्दार्थ :-

  • सर्वत्र – सभी जगह ।
  • महिमा – महानता ।
  • गीयते – गायी गयी है ।
  • तेन – उन्हीं ।
  • जगत् – संसार ।
  • एव – ही ।
  • परमं- सबसे बड़ा ।
  • अस्मिन् – इस (में)

* व्याख्या :- ( मङ्गलम् पाठ उपनिषद् वैदिकवाङ्मय के अंतिम भाग में दर्शनशास्त्र के सिद्धान्त से प्रकट होते हैं । सभी जगह परम षुरूष परमात्मा के महिमा को प्रधानतापूर्वक गायी गयी है । उन्हीं परमात्मा से यह संसार व्याप्त और अनुशासित है । वही सभी तपस्वियों का सबसे बड़ा लक्ष्य है । इस पाठ में उन्ही परमात्मा के लिए उपनिषद् से पाँच मंत्र (श्लोक) पद के रूप में संकलित है । )

* वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-
Q1. पीयूषम् भाग – 2 में संकलित प्रथम सर्ग (पाठ) का क्या नाम है ?
उत्तर:-  मङ्गलम्।

Q2. “मङ्गलम्” शब्द का अर्थ क्या होता है ?
उत्तर:-  सर्व मंगलमय।

Q3. “मङ्गलम्” पाठ किससे लिया गया है ?
उत्तर:-  उपनिषद् से ।

Q4. उपनिषद् की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर:-  108 ।

Q5. “मङ्गलम्” पाठ किस उपनिषद् से लिया गया है ?
उत्तर:-  वैदिकवाङ्मय उपनिषद् से ।

Q6. “मङ्गलम्” पाठ के रचनाकार कौन है ?
उत्तर:-  महर्षि वेदव्यास जी ।

Q7. “मङ्गलम्” पाठ में किसके महिमा का गुणगान किया गया है ?
उत्तर:- परमात्मा के ।

Q8. “मङ्गलम्” पाठ में कितने मंत्र संकलित है ?
उत्तर:- पाँच (05) ।

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श्लोक संख्या - 01

Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 1
Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 1

हिरण्मयेन पात्रेण सत्स्यापिहितं मुखम्।
तत्त्वं पूषन्नापावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ।।

* अन्वयाः :- हे पूषन् ! सत्यस्य मुखं हिरण्मयेन पात्रेण अपिहितम् (वर्तते) , तत् सत्यधर्माय (मह्यम्) दृष्टये अपावृणु ।।

* संधि-विच्छेद :-

  • सत्स्यापिहितम् – सत्यस्य + अपिहितम् ।
  • पूषन्नापावृणु – पूषन् + अपावृणु ।
  • तत्त्वं – तत् + त्वम् ।

* शब्दार्थ :-

  • सत्यस्य – सत्य का ।
  • हिरण्मयेन – सोने – सा ।
  • पात्रेण – आवरण से ।
  • अपिहितम् – ढँका हुआ
  • तत् – उस (नपुंसक लिंग के लिए) ।
  • मह्यम् – मुझे ।दृष्टये – प्राप्ति के लिए ।
  • अपावृणु – हटा दें ।

* श्लोकार्थ – हे पूषन् (सूर्य) ! सत्य का मुख स्वर्ण सदृश्य आवरण से ढँका हुआ है । उसे सत्यधर्मवानों की प्राप्ति के लिए हटा दें ।

* वस्तुनिष्ठ प्रश्न –
Q1. हिरण्मयेन पात्रेण ———— दृष्टये । किस उपनिषद् से लिया गया है ?
उत्तर:- ईशावास्योपनिषद् से ।

Q2. सत्य का मुख किससे ढँका हुआ है ?
उत्तर:- हिरण्मय पात्र से ।

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श्लोक संख्या - 02

Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 2 | प्रथमः पाठः मङ्गलम्
Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 2 | मङ्गलम् - Mangalam

अणोरणीयान् महतो महीयान् आत्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम् ।
तमक्रतुः पश्यति वीतशोको धातुप्रसादान्महिमानमात्मनः ।।

* अन्वयाः-  जन्तोः गुहायां निहितः (अयम्) आत्मा अणोः अणीयान् , महतः महीयान् (च वर्तते ) अक्रतुः धातुप्रसादात् आत्मनः तम् महिमानं पश्यति , वीतशोकः (च भवति) ।।

* संधि-विच्छेद :-

  • अणोरणीयान् – अणोः + अणीयान् ।
  • जन्तोर्निहितो – जन्तोः + निहितः ।
  • तमक्रतुः – तम् + अक्रतुः ।
  • प्रसादान्महिमानमात्मनः – प्रसादात् + महिमानमात्मनः ।

* शब्दार्थ :-

  • अणोः – सुक्ष्म से ।
  • अणीयान् – सुक्ष्म ।
  • महतः – महान से ।
  • महीयान् – महान् ।
  • जन्तोः – प्राणियों के ।
  • निहितः – बंद है ।
  • गुहायाम् – हृदय रूपी गुफा में ।
  • तम् – उसे ।
  • अक्रतुः – विद्वान पुरुष ।
  • पश्यति – देखते हैं ।
  • वीतशोकः – शोकरहित होकर ।
  • धातुप्रसादात् – इन्द्रियों के प्रभाव ।

* श्लोकार्थ :- प्राणियों के सुक्ष्म-से-सुक्ष्म और महान-से-महान आत्मा हृदयरूपी गुफा में बंद है । इसलिए विद्वान पुरूष उस श्रेष्ठ परमात्मा को इन्द्रियों के प्रभाव से शोकरहित होकर देखते हैं ।

* वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-
Q1. सुक्ष्म-से-सुक्ष्म क्या है ?
उत्तर:-  आत्मा ।

Q2. महान-से-महान क्या है ?
उत्तर:-  आत्मा ।

Q3. प्राणियों के हृदयरूपी गुफा में क्या निहित है ?
उत्तर:- आत्मा ।

Q4. विद्वान पुरूष शोकरहित होकर किसे देखता हैं ?
उत्तर:- आत्मा को ।

Q5. अणोरणीयान् ————- धातुप्रसादान्महिमानमात्मनः । किस उपनिषद् से संकलित है ?
उत्तर:-  कठोपनिषद् से ।

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श्लोक संख्या - 03

Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 3 | Chapter first Mangalam
Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 3 | Chapter first Mangalam slok 03

सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र तत् सत्यस्य परं निधानम्।।

* अन्वया:- सत्यम् एव जयते अनृतं न (जयते) । सत्येन (एव) देवयानः पन्थाः विततः (वर्तते) , येन हि आप्तकामाः ऋषयः (तत् सत्यं) आक्रमन्ति यत्र सत्यस्य तत्परं निधानम् (अस्ति) ।।

* संधि-विच्छेद :-

  • सत्यमेव – सत्यम् + एव ।
  • नानृतं – न + अनृतं ।
  • येनाक्रमन्त्यृषयो – येन + आक्रमन्ति + ऋषयः ।
  • ह्याप्तकामा – हि + आप्तकामा ।

* शब्दार्थ :-

  • सत्यमेव- सत्य ही ।
  • जयते – जीतते हैं ।
  • अनृतं – असत्य ।
  • सत्येन – सत्य के द्वारा/ से ।
  • देवयानः – देवलोक के ।
  • पन्थाः – राह (पथ) ।

 

  • विततः – विस्तार होता है ।
  • आक्रमन्ति – खोजते हैं ।
  • तत् – उस ।
  • निधानम् – खजाना ।
  • आप्तकामा – मोक्षार्थी ।
  • परम् – सबसे बड़ा ।

* श्लोकार्थ :- सत्य ही जीतते हैं , असत्य नहीं सत्य के द्वारा ही देवलोक के राह का विस्तार होता है । इसलिए मोक्षार्थी ऋषिलोग उस सत्य को खोजते हैं । जहाँ उस सत्य का सबसे बड़ा खजाना है ।

* वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-
Q1. कौन जीतते हैं ?
उत्तर:-  सत्य ।

Q2. किसकी जीत नहीं होती है ?
उत्तर:-  असत्य की ।

Q3. मोक्षार्थी ऋषिगण किसे खोजते हैं ?
उत्तर:-  सत्य को ।

Q4. सत्यमेव जयते ————– निधानम् । किस उपनिषद् से लिया गया है ?
उत्तर :- मुण्डकोपनिषद् ।

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श्लोक संख्या - 04

Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 4 | Chapter first Mangalam
Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 4 | Chapter first Mangalam

यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रेऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय ।
तथा विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः परात्परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ।।

अन्वयाः- यथा नद्यः स्यन्दमानाः (सत्यः) नामरूपे विहाय समुद्रे अस्तं गच्छन्ति तथा (एव) विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः सन् (तं) दिव्यम् परात्परं पुरूषम् उपैति ।।

* संधि-विच्छेद :-

  • पुरुषमुपैति – पुरुषम् + उप + इति ।

* शब्दार्थ :-

  • यथा – जिसप्रकार ।
  • नद्यः – नदियाँ ।
  • स्यन्दमानाः – प्रवाहित होती हुई ।
  • विहाय – छोड़कर ।
  • तथा – उसीप्रकार ।
  • नामरूपाद् – नामरूप से ।
  • विमुक्तः – अलग होकर ।
  • उपैति – प्राप्त करते हैं या प्राप्त होते हैं ।

* श्लोकार्थ :- जिसप्रकार नदियाँ अपने वास्तविक नाम को छोड़कर प्रवाहित होती हुई समुद्र में मिल जाती है । उसीप्रकार विद्वान पुरूष अपने नाम रूप से विमुक्त होकर उस दिव्य पुरूष परमात्मा को प्राप्त करते हैं ।

* वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-
Q1. यथा ——————- दिव्यम् । किस उपनिषद् से संकलित है?
उत्तर:- मुण्डकोपनिषद् से ।

Q2. प्रवाहित होती हुई नदी कहाँ मिल जाती है ?
उत्तर:- समुद्र में ।

3Q. विद्वान पुरूष अपने नाम से विमुक्त होकर किसे प्राप्त कर लेते हैं ?
उत्तर:- दिव्य पुरूष परमात्मा को ।


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श्लोक संख्या - 05

Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 5 | Mangalam
Class 10th Sanskrit Chapter 1 ka Slok no 5 | Mangalam

वेदाहमेतं पुरूषं महान्तम् आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ।।

* अन्वया: – अहं तमसः परस्तात् आदित्यवर्णम् एतं महान्तं पुरूषं वेद । तम् एव विदित्वा मृत्यूम् अत्येति (एतस्मात् पृथग्) अन्यः पन्थाः अयनाय न विद्यते ।।

* संधि-विच्छेद :-

  • वेदाहमेतं – वेद + अहम् + एतम् ।
  • परस्तात् – परः + तात् ।
  • तमेव – तम + एव ।
  • मृत्यूमेति – मृत्यूम् + इति ।

* शब्दार्थ :-

  • वेद – कथन ।
  • एतम् – ऐसा (यह) ।
  • आदित्यवर्ण – ज्ञानी या सूर्य वर्ण ।
  • तमसः – अंधकार स्वरूप (अज्ञानी) ।
  • पर – अन्य ।

 

  • विदित्वा – जानकर ।
  • अत्येति – पारकर जाते हैं ।
  • विद्यते – जानते हैं ।
  • नान्यः – दूसरा नहीं ।
  • अयनाय – प्राप्ति के लिए ।

* श्लोकार्थ :- मैं अज्ञानी और अन्य ज्ञानी है ऐसा विद्वान पुरूषों का कथन है और ऐसा ही जानकर वे मृत्यु को पार करते हैं । क्योंकि वे जानते हैं, कि इस संसार से पार पाने के लिए इससे अलग मार्ग नहीं हैं ।

Board Exam में प्रत्येक वर्ष पूछे जानेवाले अति महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न ।

Q1. किसका कथन है , कि मैं अज्ञानी और अन्य ज्ञानी है ?
उत्तर:- विद्वान पुरुष का ।

Q2. वेदाहमेतं —————- विद्यतेऽयनाय । किस उपनिषद् से संकलित है?
उत्तर:- श्वेताश्वतरोपनिषद् से ।

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हिन्दी प्रश्नोत्तर :-

1. मङ्गलम्  पाठ के आधार पर सत्य का स्वरूप बतायें ।
उत्तर:- महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित “मङ्गलम्” पाठ में सत्य का मुख असत्य रूपी हिरण्मय आवरण से ढँका हुआ है । सत्य और धर्म के वास्तविक रूपों की प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य से प्रार्थना किया गया है, कि उस आवरण को हटा दें , क्योंकि साधक ऋषिगण सत्य के पथ पर गमन कर मोक्ष की प्राप्ति करता है ।

2. उपनिषद् में किसका वर्णन हैं ?
उत्तर:- महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित “वैदिकवाङ्मय” उपनिषद् में  सर्वशक्तिमान , सर्वव्यापी , संसार का पालन हार , सत्यस्वरूपा उस दिव्य परम पुरूष परमात्मा के महानता का गुणगान किया है।

3. आत्मा का स्वरूप कैसा है ? वह कहाँ रहता है ?
उत्तर:- वैदिकवाङ्मय उपनिषद् के आधार पर “आत्मा” सांसारिक मोह , माया , द्वेष , छल – प्रपंचों से रहित अविनाशी है । जो सुक्ष्म – से – सुक्ष्म तथा महान – से – महान होता है । और वह प्राणियों के हृदयरूपी गुहा में निहित होता है ।

4. विद्वान पुरूष परमात्मा को कैसे प्राप्त करते हैं ?
उत्तर:- जिस प्रकार नदियाँ अपने वास्तविक नाम रूप को त्याकर प्रवाहित होती हुई समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार विद्वान पुरूष अपने वास्तविक नाम एवं इस सांसारिक मोह , माया , द्वेष , छल – प्रपंचों से युक्त संसार को त्याग कर परम पिता परमेश्वर के साधना में विलीन हो जाते हैं ।

5. “मङ्गलम्” पाठ का पाँच वाक्यों में वर्णन करें ।
उत्तर:- “मङ्गलम्” पाठ वैदिकवाङ्मय उपनिषद् के दर्शनशास्त्र के सिद्धान्त से संकलित है । सभी जगह परम षुरूष परमात्मा के महिमा के महानता को गाई गयी है । उन्हीं परमात्मा से यह संसार व्याप्त और अनुशासित है । वही सभी तपस्वियों का सबसे बड़ा लक्ष्य है । इस पाठ में उन्ही परमात्मा के लिए उपनिषद् से पाँच मंत्र (श्लोक) पद के रूप में संकलित है ।

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अभ्यासः (मौखिकः)

1. एकपदेन उत्तरं वदत :-

(क) हिरण्मयेन पात्रेण कस्य मुखं अपिहितम् ?
उत्तर:- सत्यस्य ।

(ख) सत्यधर्माय प्राप्यते किम् अपावृणु ?
उत्तर:- हिरण्मय पात्रम् ।

(ग) ब्रह्मणः मुख केन आच्छादितमस्ति ?
उत्तर:- हिरण्मय पात्रेण ।

(घ) महतो महीयान् कः ?
उत्तर:- आत्मा ।

(ङ) अणोः अणीयान् कः ?
उत्तर:-  आत्मा ।

(च) पृथिव्यादेः महत्परिमाणयुक्तात् केन पदार्थात् महत्तरः कः ?
उत्तर:- आत्मा ।

(छ) कीदृशः पुरूषः निजेन्द्रियप्रसादात् आत्मनः महिमानं पश्यति शोकरहितश्च भवति ?
उत्तर:- विद्वान पुरुष: ।

(ज) किं जयं प्राप्नोति ?
उत्तर:- सत्यम् ।

(झ) किं जयं न प्राप्नोति ?
उत्तर:- असत्यम् ।

(ञ) काः नाम रूपञ्च विहाय समुद्रे अस्तं गच्छन्ति ?
उत्तर:- नद्यः ।

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अभ्यासः (लिखितः)

1.एकपदेन उत्तरं लिखत :-

(क) सत्यस्य मुखं केन पात्रेण अपिहितम् अस्ति ?
उत्तर:- हिरण्मयेन पात्रेण ।

(ख) पूषा कस्मै सत्यस्य मुखम् अपावृणुयात् ?
उत्तर:- सत्यधर्माय दृष्टये ।

(ग) कः महतो महीयान् अस्ति ?
उत्तर:- आत्मा ।

(घ) किं जयते ?
उत्तर:- सत्यम् ।

(ङ) देवयानः पन्थाः केन विततः अस्ति ?
उत्तर:- सत्येन ।

(च) नद्यः के विहाय समुद्रे अस्तं गच्छन्ति ?
उत्तर:- नामरूपे ।

(छ) साधकः पुरूषं विदित्वा कम् अत्येति ?
उत्तर:- मृत्युम् ।

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2. अधोलिखितम् प्रदत्तप्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत्-

(क) सत्यस्य मुखं केन अपिहितम् अस्ति ?
उत्तर:- सत्यस्य मुखं हिरण्मयेन पात्रेण अपिहितम् अस्ति ।

(ख) कस्य गुहायाम् अणोः अणीयान् आत्मा निहितः अस्ति ?
उत्तर:-  जन्तोः गुहायाम् अणोः अणीयान् आत्मा निहितः अस्ति ।

(ग) विद्वान कस्मात् विमुक्तो भूत्वा परात्परं पुरूषम् उपैति ?
उत्तर:- विद्वान नामरूपात् विमुक्तो भूत्वा परात्परं पुरूषम् उपैति ।

(घ) आप्तकामा ऋषयः केन पथा सत्यं प्राप्नुवन्ति ?
उत्तर:- आप्तकामा ऋषयः देवयानः पथा सत्यं प्राप्नुवन्ति ।

(ङ) विद्वान् कीदृशं पुरूषं वेति ?
उत्तर:- विद्वान् महान्तम् पुरूषं वेति ।

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3. संधि-विच्छेद कुरुत -

(क) कस्यापिहितम् = कस्य + अपिहितम् ।
(ख) अणोरणीयान् = अणोः + अणीयान् ।
(ग) जन्तोर्निहितः = जन्तोः + निहितः ।
(घ) ह्याप्तकामा = हि + आप्तकामा ।
(ङ) उपैति = उप + इति ।


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4. प्रकृति- प्रत्यय निदर्शनं कुरूत -

(क) अपिहितम् = अपिहित + क्तः ।
(ख) निहितः = निहत + क्तः ।
(ग) विमुक्तः = वि + मुञ्च + क्तः।
(घ) विहाय = वि + हा + ल्यप् ।
(ङ) विततः = वि + मुच् + कतः ।


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5. समास - विग्रहं कुरूत -

(क) अनृतम् = न ऋतम् ।
(ख) आदित्यवर्णम् = आदित्यः वर्णम् ।
(ग) वीतशोकः = वीतः शोकः यः सः वीतशोकः ।
(घ) देवयानः = देवस्य यानः ।
(ङ) नान्यः = न अन्यः ।

मुझे आशा है, कि उक्त लिखित पोस्ट Class 10th Sanskrit Chapter 1, का मङ्गलम् (Mangalam) के सभी श्लोक एवं श्लोक का पूर्ण विश्लेषण को क्रमबद्ध तरीका से पढ़ें और समझें होंगे और आपके Board Exam में यह Class 10th Sanskrit Chapter 1 का पूर्ण विश्लेषण आपलोगों के लिए उपयोगी भी प्रतीत हो रहें होंगे । संस्कृत के प्रथमः पाठः मङ्गलम् (Class 10th Sanskrit Chapter 1), मङ्गलम् से अधिक-से-अधिक प्रश्न भी पूछे जाते हैं । इसलिए आपके Exam में यह लेख बहुत ही उपयोगी होनेवाला है ।


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