Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain : भेद, प्रकार और उदाहरण आदि || संस्कृत व्याकरण || Sanskrit Grammar
प्रिय पाठकों, इस लेख में संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) का सामान्य परिचय दिया गया है, जिसमें संधि विच्छेद, संस्कृत क्या है, और “Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain” का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। संस्कृत एक प्राचीन भाषा है, जिसका अध्ययन करने से पूर्व उसका व्याकरण जानना आवश्यक है। संस्कृत व्याकरण, जो शब्दों और वाक्यों के गठन को समझने में मदद करता है, भाषा के सभी महत्वपूर्ण अंगों और उनके भेदों का वर्णन करता है।
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Toggle“Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain” यह जानने का भी प्रयास किया गया है कि संस्कृत भाषा के मूल सिद्धांत क्या हैं और परीक्षा की दृष्टि से किन-किन अवयवों पर ध्यान देना चाहिए। इस लेख में सरल और सहज भाषा में संस्कृत के व्याकरण (Sanskrit Grammar) का क्रमबद्ध ढंग से विश्लेषण किया गया है।
महर्षि पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्यायी इस प्रश्न का सबसे महत्वपूर्ण उत्तर है कि Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain । पाणिनि के नियम संस्कृत भाषा के गहरे और विस्तृत अध्ययन का आधार हैं।
इसलिए, अगर आपको जानना है कि Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain, तो यह समझना जरूरी है कि यह भाषा के सही उपयोग के लिए बनाए गए नियमों का एक विस्तृत समूह है, जो भाषा को सटीकता से समझने में मदद करता है।
भाषा किसे कहते हैं (Bhasha Kise Kahate Hain ) ?
“जिसके द्वारा मनुष्य अपने मन के भावों या विचारों को लिखकर या बोलकर एक-दूसरे के समक्ष व्यक्त करते हैं , उसे भाषा कहते हैं ।”
यथा :- संस्कृत, हिन्दी, उर्दू , नेपाली, भोजपुरी, मैथिली, बंगाली, तमिल, मलयालम, पंजाबी, राजस्थानी आदि ।
*संस्कृत-
- संस्कृत = सम् + कृत ।
- सम् = समान या बराबर ।
- कृत = करनेवाली , बनानेवाली या किया गया ।
संस्कृत भाषा किसे कहते हैं (Sanskrit Bhasha ) ?
“प्रकृति और प्रत्यय के विभाग और संयोग या मेल के संस्कारों से प्रयुक्त भाषा को संस्कृत भाषा कहते हैं ।”
संस्कृत क्या हैं (Sanskrit Kya Hain)?
“संस्कृत देवताओं की भाषा तथा अन्य भारतीय भाषाओं की जननी (माँ) है “
*संस्कृत शब्द की उत्पत्ति किससे हुई है ?और इसका अर्थ क्या होता है ?
“संस्कृत शब्द की उत्पत्ति “सम् + सुट् + कृ + क्त” के योग से हुई है, जिसका अर्थ “प्रकृति – प्रत्यय से संस्कार” की गई भाषा होता है ।”
संस्कृत किसे कहते हैं (Sanskrit Kise Kahate Hain) ?
“सबों को समान तथा संस्कारी बनानेवाले शुद्ध शब्द को संस्कृत कहते हैं ।”
व्याकरण किसे कहते हैं (Vyakaran Kise Kahate Hain) ?
“जिस शास्त्र को अध्ययन करने से शब्दों को खंडित कर प्रकृत – प्रत्यय से उत्पत्ति द्वारा उसके वास्तविक स्वरूप और अर्थ को बताया जाता है, उसे व्याकरण कहते हैं ।”
संस्कृत व्याकरण किसे कहते हैं (Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain) ?
“जिस शास्त्र को अध्ययन करने से संस्कृत शुद्ध – शुद्ध पढ़ना , लिखना एवं बोलना आवे, उसे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran) कहते हैं ।”
जैसे :- आधुनिक संस्कृत व्याकरण और रचना, उपहार संस्कृत भाषा भास्कर आदि ।
*संस्कृत भाषा को अन्य किस नाम से जाना जाता है ?
:- देवभाषा ।
* संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran) के रचनाकार कौन है ?
:- महर्षि पाणिनि ।
संस्कृत में प्रायः किन चीजों का बहुत महत्व होता है ?
“संस्कृत में प्रायः तीन चीजों का बहुत महत्व होता है, जो निम्नांकित हैं “:-
(क) हलन्त ( `)
(ख) विसर्ग (:)
(ग) अनुस्वार (•) ।
हलन्त् का शाब्दिक अर्थ क्या होता है (Halant) ?
“हलन्त् का शाब्दिक अर्थ “अर्द्ध या आधा ” होता है ।”
यथा :- राजन – राजन् ।
पाठय – पाठ्य ।
पत – पत् ।
दृष्टवा – दृष्ट्वा आदि ।
हलन्त का प्रयोग प्रायः कहाँ - कहाँ किया जाता है ?
“जिस संस्कृत शब्द के अन्त में “म, न तथा त” होता है, उसके साथ प्रायः हलन्त का प्रयोग किया जाता है ।”
यथा :- अयम् , इदम् , इयम् , फलम् , पाटलिपुत्रम् , पुष्पम् , त्वम् , अस्मिन् , कस्मिन् , पठन् , वसन् , सर्पात् , गृहात् , पठनात् , वर्गात् , पाटलिपुत्रात् , मित्रात् आदि ।
अपवाद :- तीनों (स्त्रीलिंग , पुलिंग एवं नपुंसक लिंग) लिंगों में प्रयुक्त होने के कारण “मम” के साथ हलन्त् का प्रयोग नहीं किया जाता है ।
यथा :- मम बालकः रामः अस्ति ।
(मेरा लड़का राम है ।)
मम बालिका सीता अस्ति ।
(मेरी लड़की सीता है ।)
इदम् मम फलम् अस्ति ।
(यह मेरा फल है ।) आदि ।
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विसर्ग का प्रयोग प्राय: कहां - कहां किया जाता है ?
विसर्ग का प्रयोग निम्नांकित स्थानों पर किया जाता है :-
* विसर्ग का प्रयोग किसी पुरुष (पुलिंग) नाम के साथ तथा अकारान्त शब्दों के साथ किया जाता है ।
यथा :- रामः, श्यामः, मोहनः, सोहनः, विकाशः, नीतिशः, गोपालः, सरोजः, मनोजः, अनोजः, राजेशः, अश्वः, अजः, बालकः, वृषः, कुक्कुरः, मूषकः, गर्दभः, मयूरः, शशकः, छात्रः, जनकः आदि ।
* प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक) को दर्शाने या व्यक्त करने हेतु पुलिंग शब्द के साथ विसर्ग का प्रयोग किया जाता है ।
यथा :-
- रामः खादति । (राम खाता है ।)
- मोहनः पठति । (मोहन पढ़ता है।)
- शिक्षकः पाठ्यति । (शिक्षक पढ़ाते हैं ।)
- अश्वः चरति । (घोड़ा चढ़ता है ।)
- गर्दभः धावति । (गदहा दौड़ता है ।) आदि हालांकि ।
* स्त्रीलिंग शब्द को बहुवचन बनाने के लिए विसर्ग का प्रयोग किया जाता है ।
यथा :-
- एकवचन – बहुवचन
- बालिका — बालिकाः ।
- ललना — ललनाः ।
- आत्मजा — आत्मजाः ।
- नद्य — नद्यः आदि ।
अपवाद :- किसी स्त्रीलिंग या लड़की के नाम, आकारान्त, ईकारान्त शब्द एक वचन के साथ विसर्ग का प्रयोग नहीं किया जाता है ।
यथा :- सीता खेलति । (सीता खेलती है ।)
बालिका पठति । (बालिका पढ़ती है ।) आदि ।
अनुस्वार का प्रयोग कहाँ-कहाँ किया जाता है ?
अनुस्वार का प्रयोग निम्नांकित स्थानों पर किया जाता है :-
* अनुस्वार का प्रयोग प्रायः अकारान्त , आकारान्त शब्दों के साथ किया जाता है ।
यथा :- रामं, विद्यालयं, छात्रं, शशकं, मूषकं, सीतायां, यूवां, आवां, त्वां, लतां आदि ।
अकारान्त शब्द किसे कहते है (Akarant Shabd in Sanskrit)?
“जिस शब्द के अंतिम उच्चारण “अ” होता है , उसे अकारान्त शब्द (Aakarant Shabd) कहते है ।”
जैसे :- राम । (र् + आ + म् + अ = राम । यहाँ राम शब्द का
अंतिम उच्चारण “अ” हुआ है ।)
शिक्षक । (श् + इ + क् +ष् + अ + क् + अ = शिक्षक । यहाँ शिक्षक शब्द का अंतिम उच्चारण “अ” हुआ है ।)
(अतः उक्त “राम और शिक्षक” शब्द के वर्ण-विच्छेद के आधार पर इनका अंतिम उच्चारण “अ” हुआ है । हसलिए ये शब्द अकारान्त शब्द है । )
* अन्य उदाहरण :- श्याम, मोहन, छात्र, मूषक, सोहन, मृग, कुक्कुर, बालक, आत्मज आदि ।
इकारान्त शब्द किसे कहते हैं (Ekarant Shabd) ?
“जिस शब्द के अंतिम उच्चारण “इ” होता है , उसे इकारान्त शब्द कहते है ।”
जैसे :- मूनि । (म् + ऊ + न् + इ = मूनि। यहाँ मूनि शब्द का
अंतिम उच्चारण “इ” हुआ है ।)
भूरि । (भ् + ऊ + र् + इ = भूरि । यहाँ भूरि शब्द का
अंतिम उच्चारण “इ” हुआ है ।)
(अतः उक्त “मूनि और भूरि” शब्द के वर्ण-विच्छेद के आधार पर इनका अंतिम उच्चारण “इ” हुआ है । हसलिए ये शब्द इकारान्त शब्द है । )
* अन्य उदाहरण :- भूमि, वारि, पालि, चत्वारि, अम्बि आदि ।
ईकारान्त शब्द किसे कहते हैं (Ekarant Shabd) ?
“जिस शब्द के अंतिम उच्चारण “ई” होता है , उसे ईकारान्त शब्द कहते है ।”
जैसे :- राज्ञी । (र् + आ + ज् + ञ् + ई = राज्ञी । यहाँ राज्ञी शब्द
का अंतिम उच्चारण “ई” हुआ है ।)
रानी । (र् + आ + न् + ई = रानी । यहाँ रानी शब्द का अंतिम उच्चारण “ई” हुआ है ।)
(अतः उक्त “राज्ञी और रानी” शब्द के वर्ण-विच्छेद के आधार पर इनका अंतिम उच्चारण “ई” हुआ है । हसलिए ये शब्द ईकारान्त शब्द है । )
* अन्य उदाहरण :- मोती, दही, माली, जाली, राखी, रागनी, हाथी, कर्मी आदि ।
* नोट (Note) :-
उकारान्त” शब्द (Ukarant Shabd) – मनु , धेनु ,गुरू इन्दु, ऋतु, गुरु, जन्तु, तन्तु, तरु, दयालु, धातु, प्रभु, पशु, बन्धु, भानु, बिन्दु, मृत्यु, मनु, रिपु, लघु, वायु, वेणु, विष्णु, शम्भु, शत्रु, शिशु, सिन्धु, हेतु आदि ।
ऊकारान्त शब्द (Ukarant Shabd) – नीतू , बहू, बधू , भानू , संजू , मंजू , अंजू , रंजू , सरू आदि ।
ऋकारान्त शब्द :- पितृ , मातृ, धातृ आदि ।
इसीतरह एकारान्त, ऐकारान्त, ओकारान्त, औकारान्त, ——- आदि शब्द होते हैं ।
द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) को दर्शाने के लिए अनुस्वार का प्रयोग किया जाता है ।
यथा :-
- विद्यालयं – विद्यालय को ।
- छात्रं – छात्र को ।
- ग्रामं – गाँव को ।
- वनं – वन को ।
- गृहं – घर को ।
- वानरः – बंदर को आदि ।
संस्कृत व्याकरण के कितने भेद होते हैं (Sanskrit Vyakaran Ke Bhed) ?
संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran) के नामांकित तीन भेद होते हैं :-
(क) वर्ण विचार
(ख) शब्द विचार
(ग) वाक्य विचार ।
(क) वर्ण विचार किसे कहते हैं (Varn Vichar in Sanskrit) ?
“संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के जिस भाग में वर्णों के उच्चारण, लेखन, भेद आदि का वर्णन हो उसे वर्ण विचार कहते हैं ।”
यथा :- अ, क, च, ट, त, प, य, र, ल, व, श,ष आदि ।
(ख) शब्द विचार किसे कहते हैं (Shabd Vicharin Sanskrit) ?
“संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के जिस भाग में शब्दों की उत्पत्ति , बनावट , लेखन , प्रकार आदि का वर्णन हो , उसे शब्द विचार कहते हैं ।”
यथा :- रामः, श्यामः, मोहनः, वृषः, लेखनी, विद्यालयः, गर्दभः, गृहम्, मैदानः, मेजः, कुमुदः, सरः, नद्य आदि।
(ग) वाक्य विचार किसे कहते हैं (Vakya Vichar) ?
“संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के जिस भाग में वाक्यों की बनावट, प्रकार, महत्व आदि का वर्णन हो, उसे वाक्य विचार कहते हैं ।”
यथा :- रामः खादति । (राम खाता है ।)
मोहनः कन्दूकम् खेलति । (मोहन गेंद खेलता है ।) आदि।
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कुछ आवश्यक अवयव (शब्दार्थ) एवं उनका वाक्य प्रयोग
कुछ आवश्यक अवयव (शब्दार्थ) एवं उनका वाक्य प्रयोग :-
* अस्ति – है । (प्रथम पुरुष, एक वचन, सामान्य वाक्य में)
यथा :- रामः अत्र अस्ति ।
(राम यहाँ है ।)
* वर्तते – हैं । (प्रथम पुरुष, एक वचन, आदर्श सूचक वाक्य में)
यथा :- मम् जनकः शिक्षकः वर्तते ।
(मेरे पिताजी शिक्षक हैं। )
* स्तः – हैं । (प्रथम पुरुष, द्विवचन, सामान्य वाक्य में)
यथा :- रामः श्यामः च कुत्र स्तः ?
( राम और श्याम कहां हैं ?)
* सन्ति – हैं । (प्रथम पुरुष, बहुवचन, सामान्य वाक्य में)
यथा :- अश्वाः अत्र सन्ति ।
( घोड़ें यहां हैं ।) ।
* वर्तन्ते – हैं । ( प्रथम पुरुष , बहुवचन , आदर्श सूचक वाक्य में)
यथा :- ते शिक्षकाः वर्तन्ते ।
(वेलोग शिक्षक हैं ।)
* आसीत् – था/थी । (प्रथम पुरुष, एकवचन)
यथा :- रामः अत्र आसीत् ।
(राम यहाँ था ।)
* आस्ताम् – थे । (प्रथम पुरुष , द्विवचन )
यथा :- रामः श्यामः च कुत्र आस्ताम् ?
(राम और श्याम कहाँ थे ?)
* आसन् – थे । (प्रथम पुरुष , बहुवचन)
यथा :- दासाः अत्र आसन् ।
(नौकर यहाँ थे ।)
* बहवः – बहुत । (इसका प्रयोग संख्या बतलाने में होता है।)
यथा :- तत्र बहवः बालिकाः सन्ति ।
( वहां बहुत लड़कियां हैं ।)
* अति – बहुत । ( इसका प्रयोग विशेषता बताने में होता है ।)
यथा :- सा अति हसति ।
( वह बहुत हँसती है ।)
* इदम् – यह । ( निर्जीव एवं नपुंसक लिंग के लिए ।)
यथाः – इदम् पुष्पम् अस्ति ।
( यह फूल है ।)
* इयम् – यह । (स्त्रीलिंग के लिए।)
यथा :- इयम् ललना अस्ति ।
( यह महिला है ।)
* अयम् – यह । ( पुलिंग के लिए ।)
यथा :- अयम् बालकः अस्ति ।
( यह लड़का है ।)
* सः – वह । (पुलिंग के लिए ।)
यथा :- सः रामः अस्ति ।
(वह राम है ।)
* सा – वह । (स्त्रीलिंग के लिए ।)
यथा :- सा बालिका अस्ति ।
(वह लड़की है ।)
* तत् – वह । (निर्जीव एवं नपुंसक लिंग के लिए ।)
यथा :- तत् फलम् अस्ति ।
(वह फल है ।)
* च – और । (संस्कृत में इसका प्रयोग एक शब्द बाद होता है।)
यथा :- रामः श्यामः च पठतः ।
( राम और श्याम पढ़ते हैं।)
* वा – या । (संस्कृत में इसका प्रयोग एक शब्द बाद होता है।)
यथा :- मोहनः सोहनः वा गच्छतः ।
(मोहन या सोहन जाते हैं।)
* हि – क्योंकि ।(संस्कृत में इसका प्रयोग एक शब्द बाद होता है।)
यथा :- मोहनः पठति सः हि छात्र ।
(मोहन पड़ता है क्योंकि वह छात्र है ।)
* यतः – क्योंकि । (संस्कृत में इसका प्रयोग यथा स्थान पर किया जाता है।)
यथा :- रामः गृहम् गच्छति यतः सः पथिकः अस्ति ।
(राम घर जाता है क्योंकि वह पथिक है।)
* चेत् – यदि ।(संस्कृत में इसका प्रयोग एक वाक्य बाद होता है ।)
यथा :- त्वम् पतसि चेत् सः हसति ।
(यदि तुम गिरते हो तो वह हँसता है ।)
* अथवा – या । ( संस्कृत में इसका प्रयोग यथा स्थान पर किया जाता है ।)
यथा :- रामः अथवा मोहनः खेलतः ।
( राम या मोहन खेलते हैं ।)
* अपि – भी । (संस्कृत वाक्य के बीच में ।)
यथा :- रामः अपि पठति ।
( राम भी पढ़ता है ।)
* अपि – क्या । (संस्कृत वाक्य के शुरू में ।)
यथा :- अपि मोहनः पठति ?
( क्या मोहन पढ़ता है ।)
* एकः – एक । (पुलिंग के लिए ।)
यथा :- अयम् एकः बालकः अस्ति ।
(यह एक लड़का है ।)
* एका – एक । (स्त्रीलिंग के लिए ।)
यथा – इयम् एका बालिका अस्ति ।
(यह एक लड़की है ।)
* एकम् – एक । ( नपुंसक लिंग के लिए ।)
यथा :- इदम् एकम् फलम् अस्ति ।
(यह एक फल है ।)
* द्वौ- दो । (पुलिंग के लिए। )
यथा :- तत्र द्वौ बालकौ स्तः ।
(वहाँ दो लड़के हैं ।)
* द्वे – दो । (स्त्रीलिंग के लिए। )
यथा :- तत्र द्वे बालिके स्तः ।
(वहाँ दो लड़कियाँ हैं।)
* द्वे – दो । (नपुंसक लिंग के लिए। )
यथा :- अत्र द्वे फले स्तः ।
(यहाँ दो फल हैं ।)
* त्रयः – तीन । (पुलिंग के लिए। )
यथा :- अस्मिन् विद्यालये त्रयः बालकाः सन्ति ।
(इस विद्यालय में तीन लड़कियाँ हैं ।)
* तिस्रः – तीन । (स्त्रीलिंग के लिए। )
यथा :- मम तिस्रः स्वसाः सन्ति ।
(मुझे तीन बहनें है ।)
* त्रीणि – तीन । (नपुंसक लिंग के लिए।)
यथा :- अत्र त्रीणि फलाणि सन्ति ।
(यहां तीन फल हैं ।)
* चत्वार: – चार । (पुलिंग के लिए।)
यथा :- अत्र चत्वारः बालकाः सन्ति ।
(यहाँ चार लड़के हैं ।)
* चतस्रः – चार । (स्त्रीलिंग के लिए।)
यथा :- अत्र चतस्रः बालिकाः सन्ति ।
(यहाँ चार लड़कियाँ हैं ।)
* चत्वारि – चार । (नपुंसक लिंग के लिए ।)
यथा :- तत्र चत्वारि पुष्पाणि सन्ति ।
(वहाँ चार फूल हैं ।)
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कुछ उपयोगी अव्ययकोष
प्रिया पाठकों अब आपलोगों को कुछ उपयोगी अव्ययकोष के विषय में बताते हैं, ताकि आपलोगों का संस्कृत के शब्दों को जानने में मदद मिल सके ।
* अव्ययकोष :-
त्र – जगह ।
इह – यहाँ, इस जगह ।
अत्र – यहाँ, इस जगह ।
क्व – कहाँ, किस जगह ।
कुत्र – कहाँ, किस जगह ।
एकत्र – एक जगह ।
अन्यत्र – दूसरी जगह ।
सर्वत्र – सभी जगह ।
बहुत्र – बहुत जगह ।
मम – मेरा, मेरी, मेरे ।
दा – समय ।
एकदा – एक समय ।
अन्यदा – दूसरी समय ।
अधुना – अब, इस समय ।
इदानीम् – अब, समय ।
एतर्हि – अब , इस समय ।
तदा – तब ।
तदानीम् – तब , उस समय ।
तर्हि – तब, उस समय ।
कदा – कब, किस समय ।
कर्हि – कब, किस समय ।
यदा – जब, जिस समय ।
यर्हि – जब, जिस समय ।
सदा – हमेशा, हर समय ।
सर्वदा – हमेशा, हर समय ।
अन्यदा – दूसरे समय ।
अद्य – आज ।
ह्यः – कल (बीता हुआ ) ।
श्वः – कल (आनेवाला ) ।
परश्वः – परसों ।
कः – कौन ।
एव – ही ।
तु – तो ।
न – नहीं ।
अपि – भी ।
यदि – अगर ।
तर्हि – तो ।
यावत् – जबतक, जैसे ।
तावत् – तबतक, वैसे ।
यथा – जैसे, जिसप्रकार ।
तथा – वैसे ।
यत् – कि ।
यतः – क्योंकि , चूँकि ।
अतः – इसलिए ।
अतएव – इसीलिए ।
इति – यह, ऐसा ।
एवम् – ऐसा, इसप्रकार ।
पुनः – फिर ।
भूयः – फिर ।
पुनः पुनः – बार – बार ।
भूयो – भूयः – बार – बार ।
मुहुर्मुहुः – बार-बार ।
यथातथा – जैसे – तैसे ।
यत्र-तत्र – जहाँ-वहाँ ।
इतस्ततः – इधर – उधर ।
मैं आशा करता हूँ कि उपरोक्त पोस्ट में “Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain” का उत्तर, संस्कृत शब्द का अर्थ, उसकी उत्पत्ति, और संस्कृत व्याकरण के विभिन्न भेदों को सरल भाषा में समझा लिए होंगे । इस लेख का उद्देश्य था कि आप सभी “Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain” को आसानी से समझें और इसे अपनी परीक्षा की तैयारी में भी उपयोगी पाएं, खासकर बिहार बोर्ड परीक्षा के लिए।
इस लेख में व्याकरण के मूल सिद्धांतों और उनके उपयोग को विस्तार से बताया गया है, जिससे आपको “Sanskrit Vyakaran Kise Kahate Hain” से जुड़ी सभी जानकारी सरल शब्दों में समझने में मदद मिले।
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